नमक पर व्यंग्य

नमक पर व्यंग्य होटल में खाने के मेज पर छोटे छोटे छिद्रों वाले डिब्बे पड़े ही रहते हैं।कार्टून बने डिब्बे में नमक मिर्च भरे होते हैं, दाल सब्जी में नमक कम हो तो मन मर्जी डाल लो।लेकिन सब्जी में नमक ज्यादा होने पर सारा जायका बिगड़ जाता है।नमक को सब्जी का जान कह सकते हैं,पानी … Read more

निषादराज के दोहे

निषादराज के दोहे (1) पाषाणमत बनना पाषाण तू,मन में रखना धीर।दया धर्म औ प्यार से,बोलो ज्यों हो खीर।। (2) क्षितिजदूर क्षितिज पर आसमां,नीला रंग निखार।जैसे श्यामल गात हो,सुन्दर कृष्ण मुरार।। (3) वत्सलमाँ का वत्सल है बड़ा,ममता का भण्डार।सारे जग में हैं नहीं,इनके जैसा प्यार।। (4) शुभ्रशुभ्र ज्योत्सना चाँदनी,धवल निखार प्रकाश।रजनी में प्यारा लगे,शीतलता आभास।। (5) … Read more

बेबश नारी पर कविता- लाचार ममता

बेबश नारी पर कविता सायं ठल गई अंधेरों में कब तक यूं ही सोओगे , ममता की दुलारी चिडियाँ कब तक यूं ही खोओगे। ममता का जमीर बेच दिया-इंसानियत के गद्दरो ने,बहना का सब धीर सेज दिया-चिडियाँ के हत्यारों ने।चोर,उच्चके चौराहों पर ध्यान लगाए बैठे है, इज्जत की पौडी पर अपना- ईम्मान लगाए बैठे है। … Read more

जात-पात पर दोहे

जात-पात पर दोहे जात-पात के रोग से, ग्रस्त है सारा देश|भेद-भाव ने है दला, यहाँ पर वर्ग विशेष|| जात-पात के जहर से, करके बंटा-धार|मरघट-पनघट अलग हैं, करते नहीं विचार|| जात-पात के भेद में, नित के नए प्रपंच|जात मुताबिक संगठन, जात मुताबिक मंच|| जात-पात है भयावह, जात भयानक रोग|करें नहीं उपचार क्यों, झेल रहे हैं लोग|| … Read more

आदमी का प्रतिरूप पर कविता

आदमी का प्रतिरूप पर कविता-विनोद सिल्ला आदमीनहीं रहा आदमीहो गया यन्त्र सा जिसका नियन्त्रण हैकिसी न किसीनेता के हाथकिसी मठाधीश के हाथया फिर किसीधार्मिक संस्था के हाथजिसका आचरण है नियंत्रितउपरोक्त द्वाराआदमी होने काआभास सा होता हैबस आदमी काप्रतिरूप सा लगता है आज का आदमीनहीं रहाआदमी साजाने कहां खो गईआदमीयत