Month: July 2021
कलम के सिपाही -मुंशी प्रेमचंद जी
कलम के सिपाही -मुंशी प्रेमचंद जी मेरे मूर्धन्य मुंशी प्रेमचंद जी थे बड़े ” कलम के सिपाही “अब…….”भूतो न भविष्यति”हे ! मेरे जन जन के हमराही ! उपन्यास सम्राट व कथाकारजनमानस के ये साहित्यकार,गरीब-गुरबों की पीड़ा लिखतेथे अन्नदाता के तुम पैरोकार ! समस्याएँ,,,,संवेदनाओं काकरते थे मार्मिक शब्दांकन,‘झंकृत और चमत्कृत’ रचनाहोते भावविभोर चित्रांकन ! ये रूढ़िवादी … Read more
मुंशी प्रेमचंद जी पर दोहे
मुंशी प्रेमचंद जी पर दोहे प्रेमचंद साहित्य में,एक बड़ी पहचान।कथाकार के नाम से,जानत सकल जहान।। उपन्यास लिखते गए,कफ़न और गोदान।प्रेमचंद होते गए,लेख क्षेत्र सुल्तान।। रही गरीबी बचपना,करते श्री संघर्ष।मिली एक दिन नौकरी,जीवन में उत्कर्ष।। गाँधी के सानिध्य में,प्रेम किए सहयोग।फौरन छोड़ी नौकरी,समय लेख उपयोग।। ✒️ *परमेश्वर अंचल*
उफ! ये सावन जब भी आता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है” वो बचपन की मस्ती,वो तोतली बोली,वो बारिश का पानी,और बच्चों की टोली,वो पहिया चलाना और नाव बनाना,माँ का बुलाना और हमारा न आना,वो अनछुए पल याद दिलाता है “उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।1।। लड़कपन में लड़ना और फिर मचलनादोस्तों का मनाना हमें फिर मिलानामैदान के कीचड़ में गिरना-गिरानाऔर … Read more
जनसंख्या वृद्धि
11 जुलाई 1987 को जब विश्व की जनसंख्या पाँच अरव हो गई तो जनसंख्या के इस विस्फोट की स्थिति से बचने के लिए इस खतरे से विश्व को आगाह करने एवं बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु 11 जुलाई 1987 को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की … Read more
ये आम अनपढ़ बावला है
ये आम अनपढ़ बावला है दुर्व्यवस्था देख,क्या लाचार सा रोना भला है।क्या नहीं अब शेष हँसने की रही कोई कला है। शोक है उस ज्ञान पर करता विमुख पुरुषार्थ से जो,भाग्य की भी भ्राँतियों ने,कर्म का गौरव छला है। आग तो कोई लगा दे,रोशनी के नाम से पर,क्रांति का नवदीप केवल चेतना से ही जला … Read more
प्रकृति का इंसाफ पर कविता
प्रकृति का इंसाफ पर कविता कायनात में शक्ति परीक्षा,दिव्य अस्त्र-शस्त्र परमाणु बम से |सारी शक्तियां संज्ञा-शून्य हुई ,प्रकृति प्रदत विषाणु के भ्रम से |अटल, अविचल, जीवनदायिनी ,वसुधा का सीना चीर दिया |!दोहन किया युगो- युगो तक,प्रकृति को अक्षम्य पीर दिया ||सभ्य,सुसंस्कृत बन विश्व पटल पर,कर रहे नित हास-परिहास | त्राहिनाद गूंज रहा चहुं ओर ,अब … Read more
बेटी पर कविता
बेटी पर कविता एक मासूम सी कली थीनाजों से जो पली थी आँखों में ख़्वाब थे औरमन में हसरतें थीं तितली की मानिन्द हर सुउड़ती वो फिर रही थी सपने बड़े थे उस केसच्चाई कुछ और ही थी अनजान अजनबी जबआया था ज़िंदगी में दिल ही दिल में उस कोअपना समझ रही थी माँ बाप … Read more