“उफ!ये सावन जब भी आता है”
वो बचपन की मस्ती,वो तोतली बोली,
वो बारिश का पानी,और बच्चों की टोली,
वो पहिया चलाना और नाव बनाना,
माँ का बुलाना और हमारा न आना,
वो अनछुए पल याद दिलाता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।1।।
लड़कपन में लड़ना और फिर मचलना
दोस्तों का मनाना हमें फिर मिलाना
मैदान के कीचड़ में गिरना-गिराना
और माँ से वो गंदे कपड़े छुपाना
वो अनछुए पल याद दिलाता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।2।।
यौवन की दुनिया में आकर निखरना
किसी अजनबी से मिलकर बहकना
दिल का धड़कना वो बेचैन होना
कभी याद करके हँसना फिर रोना
पापा का डाँटना और माँ का समझाना
वो अनछुए पल याद दिलाता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।3।।
अचानक से फिर समय का बदलना
वो परिवार के साथ बाहर निकलना
वो छतरी उड़ाना और भुट्टे खाना
बच्चों को सावन के झूले झुलाना
माता-पिता बनकर कर्तव्य निभाना
वो अनछुए पल याद दिलाता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।4।।
समय की कश्ती का फिर यूँ पलटना
बढ़ती हुई उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ना
कमरे में बैठकर बारिश के मजे लेना
चाय की चुस्की , बेबाक़ बात करना
पोते-पोतियों को अपने किस्से सुनाना
वो अनछुए पल याद दिलाता है
“उफ!ये सावन जब भी आता है”।।।5।।
।।।दीप्ता नीमा।।।
इंदौर
(शिक्षा- एम.एस.सी, बी.एड ,बी.जे.एम.सी)