जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग

जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग

शब्द बिदाई सुन लगे , होता कोई दूर ।
अपने हमसे छूटते , होकर अति मजबूर ।।

मात पिता का नेह ले , सृजन साधना शान ।
करें बिदाई मंजरी , अद्भुत ले पहचान ।।

बिलख रहे है मात पितु , चली सुता ससुराल ।
किये बिदाई आज वह , उत्तर संग सवाल ।।

हाय विधाता क्या किया , पिता गए परलोक ।
करें विदाई किस तरह , कैसे लें हम रोक ।।

चिर निद्रा में सो रही , बिलख रहा है लाल ।
आज बिदाई दे रहें , देख सभी बेहाल ।।

विकल प्रेम की है नियति , अश्रु बहे है नैन ।
करूँ बिदाई साजना , होकर मैं बेचैन ।।

पूर्ण हुआ सेवा समय , दिया ज्ञान का दान ।
आज बिदाई की घड़ी , सभी विकल श्रीमान् ।।

एक जन्म का बंध है , रिश्तों का ये डोर ।
दर्द बिदाई दे रहा , भींगे आँचल छोर ।।

शब्द हुए हैं मौन अब , छलक रहे हैं नैन ।
कैसे किसको क्या कहें , करे बिदा बेचैन ।।

जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग ।
लेकिन फीका मत पड़े , दिव्य प्रेम का रंग ।।


—— माधुरी डड़सेना ” मुदिता “
भखारा

दिवस आधारित कविता