पुलवामा पर कविता
प्रेम दिवस पर पुलवामा में,
परवानों को प्यार हुआ।
आज गीदड़ों के हाथों,
था शेरों का संहार हुआ।।
कट गई,फट गई,बंट गई वो,
फिर भी उसको हमदर्दी थी।
सहज सहेजे थी अब तक,
वो खून में भीगी वर्दी थी।।
सिसका सिंदूर, रोई राखी,
माता जी सांसे भूल गई।
भाई,बाप और बच्चों की,
जिंदगी अधर में झूल गई।।
इंच इंच नापा था सबको,
जब बेटे हमने सौंपे थे।
लौटाये तब टुकड़ों में,
वो कौन से मंजर थौंपे थे।।
बेशक थे वो टुकड़ों में,
पर लिपट तिरंगे आए थे।
अमिट निशानी बनकर वो,
अब आसमान पर छाये थे।।
धन्य हुई भारत माता,
नम नैनों से सत्कार किया।
लुटा के बेटे माँओं ने,
भारत मां पर उपकार किया।।
शिवराज चौहान नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)