डगमग इंसान चले
सारस छंद विधान – इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं , 12,12 मात्रा पर यति होती है ; आदि में विषम कल होता है और 3,4,9,10,15,16,21,22 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं ।
मापनी:–2112 2112 , 2112 2112
डगमग इंसान चले
कर्म न कर बात करे,डगमग इंसान चले।
भूल चुका पथ अपना,बेबस हो हाथ मले।।
रंग नहीं ढंग नहीं,सार्थक संबंध नहीं।
बोझ बना जीवन भी ,ज्ञान न सत्संग कहीं।।
चाल चले ये कपटी,बोल बड़े बोल रहा ।
नित्य नए पाप करे, भीतर से डोल रहा।।
रोज ठगी खेल करे, भेद नहीं खोल रहा।
धर्म तजे कर्म तजे, ये सपने तोल रहा।।
रात टली बात टली,चेत अरे मूर्ख बली।
जन्म हुआ मानव का,सार्थक कुछ कर असली।।
डाल मुखौटा मुख पे,और नहीं घूम छली।
देख रहे राम तुझे,मांग क्षमा सोच भली।।
—-गीता उपाध्याय’मंजरी’
रायगढ़ छत्तीसगढ़