अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

वर्षा बारिश

अपना जीवन पराया जीवन

अस्तित्व को टटोलता जीवन

क्या नश्वर क्या अनश्वर

क्या है मेरा , क्या उसका

जीवन प्रेम या स्वयं का परिचय

जीवन क्यूं करता हर पल अभिनय

क्या है जीवन की परिभाषा।



जीवन , जीवन की अभिलाषा

गर्भ में पलता जीवन

कलि से फूल बनता जीवन

मुसाफिर सा , मंजिल की

टोह में बढ़ता जीवन

चंद चावल के दाने

पंक्षियों का बनते जीवन।



प्रकृति के उतार चढ़ाव से

स्वयं को संजोता जीवन

कभी पराजित सा , कभी अभिमानी सा

स्वयं को प्रेरित करता जीवन।



माँ की लोरियों में

वात्सल्य को खोजता जीवन

कहीं मान अपमान से परे

स्वयं को संयमित करता जीवन।



कहीं सरोवर में कमल सा खिलता जीवन

कहीं स्वयं को स्वयं पर बोझ समझता जीवन

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