तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ
मन में शुभ भाव उमड़ते हों,
तब मैं भी चाहूँ,प्यार करूँ।
जब रिमझिम वर्षा आती हों,
ज्यों गीता ज्ञान सुनाती हो।
खिड़की से तान मिलाती हो,
मुझको मानो उकसाती हो।
श्वेद संग वर्षा में गाऊं,
मै,भी जब कुछ श्रम साध्य करूं।
मात का उज्जवल भाल सजे,
तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ।।
भाती है दिल आलिंगन सी,
स्वर सरगम हिय के बंधन सी।
मन मे शुभ भाव सँवरते हो,
जब नेह दुलारे रिश्तें हों।
क्यूँ ना चल कर पतवार बनूं,
बिटिया को शिक्षादान करूं,
कुछ अपने पन की बातो से,
तब मै भी चाहूँ प्यार करूँ,
जन की सेवा हरि की सेवा,
हरि जन सेवा काज सभी।
मैं मेटूँ कुछ पीर पराई,
हो मनुज,मनुज स्वीकार सभी।
लोकतंत्र के जन गण मन को,
मन नमित नमन हर बार करूँ।
जब राम राज्य सा शासन हो,
तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ।
कुछ आकुल अधर बुलाते हों,
तन मन संत्रास जगाते हों।
कड़वे आकर्षक आमंत्रण,
इस दिल से तान मिलाते हों।
अपना भारत,वतन तिरंगा,
इतिहासी,संस्कृति गान करूँ
संविधान ,संसद गौरव हो,
तब मैं भी चाहूँ प्यार करूं।
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,सिकंदरा,
दौसा(राज.)9782924479