बादलो ने ली अंगड़ाई

बादलो ने ली अंगड़ाई

badal, बादल

बादलो ने ली अंगड़ाई,
खिलखलाई यह धरा भी!
हर्षित हुए भू देव सारे,
कसमसाई अप्सरा भी!

कृषक खेत हल जोत सुधारे,
बैल संग हल से यारी !
गर्म जेठ का महिना तपता,
विकल जीव जीवन भारी!
सरवर नदियाँ बाँध रिक्त जल,
बचा न अब नीर जरा भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!

घन श्याम वर्णी हो रहा नभ,
चहकने खग भी लगे हैं!
झूमती पुरवाई आ गई,
स्वेद कण तन से भगे हैं!
झकझोर झूमे पेड़ द्रुमदल,
चहचहाई है बया भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!

जल नेह झर झर बादलों का,
बूँद बन कर के टपकता!
वह आ गया चातक पपीहा,
स्वाति जल को है लपकता!
जल नेह से तर भीग चुनरी,
रंग आएगा हरा भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!
. °°°°°°°°°
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *