सावन पर कविता
सावन-सुरंगा
सरस-सपन-सावन सरसाया ।
तन-मन उमंग और आनंद छाया ।
‘अवनि ‘ ने ओढ़ी हरियाली ,
‘नभ’ रिमझिम वर्षा ले आया ।
पुरवाई की शीतल ठंडक ,
सूर्यताप की तेजी, मंदक ।
पवन सरसती सुर में गाती ,
सुर-सावन-मल्हार सुनाती ।
बागों में बहारों का मेला ,
पतझड़ बाद मौसम अलबेला ।
‘शिव-भोले’ की भक्ति भूषित ,
कावड़ यात्रा चली प्रफुल्लित ।
युवतियां ‘ शिव-रूपक’ को चाहती ,
इसके लिए वो ‘उमा’ मनाती ।
‘सोमवार’ सावन के प्यारे ,
शिव-भक्तों के बने सहारे ।
सृष्टि फूलीत है सावन में ,
सब जीवों के ‘सुख-जीवन’ में ।
जंगल में मंगल मन-मोजें ,
घोर-व्यस्तता में शान्ति खोजें ।
मनुज प्रकृति निकट है आए ,
गोद मां(प्रकृति) की है सुखद-सहाय ।
मोर-पपीहा-कोयल गाए,
दूर परदेश से साजन आए ।
साजन , सावन में और भी प्यारे ,
वर्षा संग-संग प्रेम-फुवारें ।
प्रेम-भक्ति का मिलन अनोखा ,
रस-स्वाद से बढ़कर चोखा ।
बरसों बरस सावन यूं आए ,
अजस्र-मन यही हूंक उठाए ।
✍✍ *डी कुमार--अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)*
सावन मास (चौपाई छंद)
सावन मास पुनीत सुहावे।
मोर पपीहा दादुर गावे।।
श्याम घटा नभ में घिर आती।
रिमझिम रिमझिम वर्षा भाती।।१
आक विल्व जल कनक चढ़ाकर।
शिव अभिषेक करे जन आकर।।
झूले पींग चढ़े सुकुमारी।
याद रहे मन कृष्ण मुरारी।।२
हर्षित कृषक खेत लख फसले।
उपवन फूल पौध मय गमले।।
नाग पंचमी पर्व मनाते।
पौराणिक दृष्टांत बताते।।३
सर सरिता वन बाग तलाई।
नीर भार खुशहाली आई।।
प्रियतम से मिलने के अवसर।
जड़ चेतन सब होय अग्रसर।।४
कीट पतंग जीव खग नाना।
पावस ऋतु जन्मे जग जाना।
सावन पावन वर सुखदाई।
भक्ति शक्ति अरु प्रीत मिताई।।५
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बाबू लाल शर्मा “बौहरा”