हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘ की कवितायेँ हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-
संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
भारत महान हो
पूजा हो मन्दिरों में,
मस्जिद में अजान हो|
सारे जहाँ से अच्छा,
भारत महान हो ||
फिर कोई तैमूर या
बाबर न आ सके,
कोई लुटेरा लूट कर
हमको न जा सके |
मजहब के नाम पर
फिर यह मुल्क न बंटे –
कोई न कौम प्यार की
मोहताज रह सके |
अरुणाभ छितिज से पुनः
नूतन बिहान हो ||
सारे जहाँ से अच्छा
भारत महान हो ||1।।
सांझ के सुअंक पर
हो भोर की किरण नवल,
नेह से सने – सने हों
चारु-दृग -चषक -कंवल |
झूम- झूम वात -चपल
उर्वी श्रृंगार करे –
धूप -छॉव लीन हो
नित सृजन – विमल |
उत्कर्ष के उद्धोष में
संयम निदान हो |
सारे जहाँ से अच्छा
भारत महान हो ||2!।
चांदनी पुलक भरे
प्राण में अमरता,
द्वार – द्वार बह चले
ले मलय मधुरता |
सूर्य के प्रताप से
शस्य श्यामला ये सृष्टि –
नित नये संधान हो।
हर हृदय प्रचुरता
चिर बसन्त के अधर
पर देश गान हो ||
सारे जहाँ से अच्छा
भारत महान हो ||3!
रचनाकार :-हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘
कोरोना सम्बन्धी दोहे
जीवन की यह त्रासदी,
नहीं सकेंगे भूल,
एक भाव दिखने लगा,
माटी,सोना,फूल ।1।
नहीं कोरोना थम रहा ,
असफल सभी प्रयास ,
राजनीति नेता करें,
जनता हुई उदास ।2।
राम-भरोसे चल रही,
जीवन की हर सॉस,
प्राण वायु बिन मर रहे,
पड़ी गले में फॉस 3।
अगर बहुत अनिवार्य तो,
घर से बाहर जाय ,
समझ-बूझ मुख-आवरण,
तुरतहिं लेय लगाय।4।
संक्रमण के दौर में,
बचें बचायें आप,
मास्क लगा दूरी बना,
ना माई ना बाप ।5।
कोरोना के नाश-हित ,
इतना है अनुरोध,
ए सी ,कूलर भूल कर,
नहीं चलायें लोग ।6।
जी भर काढ़ा पीजिये,
सुबह-शाम लें भाप,
कोरोना भग जाएगा,
देखो अपने आप ।7।
पोषण समुचित लीजिए,
चाहें, रहें निरोग ,
नहीं संक्रमण छू सके,
करें अगर नित योग ।8।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ ‘हरीश’,
संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है
मातृभूमि प्रिय भरत भूमि पर ,
मॉं की भाषा हिन्दी है।
नित नूतन परिवेश सजाती,
सबकी भाषा हिन्दी है।टेक।
यदि करें सभी सम्मान,
देश के संविधान का ,
पंथ प्रशस्त स्वयम् हो जाये,
हिन्दी के उत्थान का ।
कोटि-कोटि कंठों में मचलती,
मन की आशा हिन्दी है ।
नित नूतन परिवेश सजाती ,
सबकी भाषा हिन्दी है।1।
शासन और प्रशासन सुन लो ,
इतना अनुरोध हमारा है ,
चुल्लू भर पानी ले डूबो,
हिन्दी ने तुम्हें संवारा है ।
थोथे नारे , संकल्पों में,
बनी तमाशा हिन्दी है ।
नित नूतन परिवेश सजाती,
सबकी भाषा हिन्दी है।2।
हमने ही तो प्रगतिशील बन,
हिन्दी को ठुकराया है ,
फूट डाल कर राज कराती,
अंग्रेजी अपनाया है।
चीर-हरण की आशंका में,
उत्कट अभिलाषा हिन्दी है।
नित नूतन परिवेश सजाती ,
सबकी भाषा हिन्दी है।3।
आओ स्नेह लुटाये मिलकर,
हरें सभी की पीरा,
इसके हर अक्षर में ढूँढें,
तुलसी ,सूर,कबीरा ।
भारतेन्दु व महावीर की,
संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है।
नित नूतन परिवेश सजाती ,
सबकी भाषा हिन्दी है।4।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश,
ई — 85
मलिकमऊ नई कालोनी,
रायबरेली 229010 (उप्र)
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