मोची पर कविता- आशीष कुमार
सड़क किनारे चौराहे पर
बैठा हुआ है बोरी पर
बगल में रखा औजार बक्सा
लोग पुकारे मोची कह कर
रोजी रोटी चलती उसकी
चप्पल-जूतों की मरम्मती पर
सफेद बाल घनी मूछें
लुंज-पुंज सी धनुषाकार काया
फटी धोती फटा जामा
फटेहाल गमछा पुराना
शिकन पड़ गई माथे पर
ध्यान मग्न मगर फटे जूते पर
सिलाई करे युक्ति लगा कर
चमकाए जूते रगड़ रगड़ कर
जीवन बीता धूल फांकते
बिछाकर बोरी यूं ही सड़क पर
समय बीता धूल झाड़ते
ब्रश लगाते गैरों के जूतों पर
सिल न सका फटी जेब अपनी
बचपन से पूरी जवानी गँवा कर
–आशीष कुमार