गुरू पूर्णिमा पर कविता
नित्य करें हम साधना,रखें हृदय के पास।
ज्ञान रुपी आशीष से,जीवन हो मधुमास।।१।।
गुरुवर की पूजा करें,गुरु ही देते ज्ञान।
जिनके ही आशीष से,मिले अचल सम्मान।।२।।
गुरू नाम ही साधना,साधक बनकर साध।
जिनके सुमिरण से सदा,कटे कोटि अपराध।।३।।
बनकर रहते सारथी,गढ़ते नित नव राह।
जो भी मन की बात हो,पूरी करते चाह।।४।।
गुरु महिमा नित गाइये,मिले समय सुब शाम।
गुरुवर के ही ज्ञान से,मिले राम घनश्याम।।५।।
ज्ञान सदा जो बाँटते,कभी नहीं ले मोल।
सबसे ऊँचा है जग में, गुरुवर की जय बोल।।६।।
परम्परा गुरु शिष्य की,सदियों से है जान।
जहाँ मिले हमको सदा,करें मान सम्मान।।७।।
कृपा सदा करना प्रभू,धरूँ चरण में शीश।
नित सबका कल्याण हो,गुरुवर दो आशीष।।८।।
तोषण दिनकर चाहता,कहीं न हो गुरु द्वेष।
हरा भरा खुशहाल हो,प्यारा भारत देश।।९।।
तोषण चुरेन्द्र दिनकर
धनगांव डौंडी लोहारा
बालोद छत्तीसगढ़