अति पर कविता – सुशी सक्सेना

इंदौर मध्यप्रदेश से आदरणीया सुशी सक्सेना द्वारा रचित अति पर कविता यहां पर प्रस्तुत है

Kavita Bahar || कविता बहार
Kavita Bahar || कविता बहार

अति पर कविता

अति की बरसा, अति का सूखा,
अति न किसी की भाये |
अति की आँधी जब चल जाये,
तो प्रलय दुनिया मे आ जाये |

अति की बोली, अति का मौन,
अति की भाषा समझे कौन |
पत्थर के भी टुकड़े हो जाते हैं,
जब मार अति की बो खाये |

अति का क्रोध, अति का सहना,
अच्छा न लगे अति का हंसना |
नासूर बन जाते है इक दिन वे भी
अति के आँसू जो पीते जाये |

अति का भला, अति का बुरा,
अति की चाह न किसी को भाये |
सगे सगे भी दुश्मन बन जाते हैं,
अति की नफरत जो दिल मे बस जाये |

अति का रूप, अति कुरूप,
अति की दौलत पागल कर जाये |
भूखा मरे जो अति गरीब हो,
अति न किसी की भाये |

अति की उलझन, अति का सुकून
दिवाना बना दे अति का जुनून |
अति का जमघट, अति का वीराना,
ऐसे मे साँस चैन की को ले पाये ।।


सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

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