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मच्छर पर कविता /पद्म मुख पंडा

मच्छर पर कविता/ पद्म मुख पंडा

कविता संग्रह

ये मच्छर भी?

न दिन देखते, न रात,
ये आवारा मच्छर,
करते हैं, आघात मुंह से,
जहरीले तरल पदार्थ,
मानव शरीर के अंदर,
डालकर, चंपत हो जाते हैं!
होती है खुजली,
होकर परेशान , आदमी लेता है संज्ञान,
मॉस्किटो क्वाइल जलाकर,
आश्वस्त हो जाता है,
मच्छर से बदला लेने का,
यह तरीका भी फीका पड़ चुका है,
मच्छर धुएं के साथ भी,
राग भैरवी गाते हैं,
पालने में सोए हुए बच्चे को भी,
चिकोटी काट जाते हैं!
बच्चा रोता है, मां को तकलीफ़ होती है,
बच्चे को लेकर,
मच्छर दानी के साथ सोती है।
मलेरिया डेंगू के ओ जन्म दाता,
तुमको बच्चों पर भी, तरस नहीं आता?
तुम्हारा अंत हम करके रहेंगे
बहुत हो चुका, अब न यह यातना सहेंगे!

पद्म मुख पंडा,

ग्राम महा पल्ली
पोस्ट ऑफिस लोइंग
जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

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