CLICK & SUPPORT

गणेश- मनहरण घनाक्षरी

गणेश
गणपति

गणेश- मनहरण घनाक्षरी

ब्रह्म सृष्टिकार दैव,
भूमि रचि हेतु जैव,
मातृभूमि भार पूर्ण,
धारे नाग शेष है।

शीश काटे पुत्र का वे,
क्रोध मिटे हुआ ज्ञान,
हस्ति शीश रोपे शिव,
दैवीय निवेश हैं।

पार्वती सनेह जान,
दिए शम्भु वरदान,
पूज्य गेह गेह नेह,
देवता गणेश हैं।

विष्णु शम्भु देव अज,
भूप लोक दम्भ तज,
पूजते गणेश को ही,
स्वर्ग के सुरेश हैं।
. —-+—
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

CLICK & SUPPORT

You might also like