गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता
पैरा भूँसा ,कांदी-कचरा,कोठा कोंन सँवारे,
हड़ही होगे ,बछिया कहिके रोजेच के धुत्कारे।।
बगियाके बुधारू ,छोड़िस,
गउधन आन खार।
बांधे-छोरे जतने के,
झंझट हे बेकार।।
बछिया आगे शहर डहर अउ
पारा-पारा घुमय।
कोनो देदे रोटी-भात
लइका मन ह झुमय।।
देखते-देखत बछिया संगी
घोसघोस ले मोटागे।
चिक्कन-देहें ,दिखन लागय
मन सबके हरसागे।।
आना होगे एक दिन संगी
बुधारू के हाट।
देख परिस ,बछिया ल
लालच करिस घात।।
धरे-धरिस बछिया ल
बछिया ह लतियारे।
पुचकारय त बुधारू ल
बछिया मुड़ म मारय।।
आँखी डबडब होवत रहय
गउधन के संगवारी।
मन म गुनत-सोंचत रहय
ये कइसन रखवारी…
अउ ये कइसन गद्दारी….???
धनराज साहू बागबाहरा
बहुत ही सुंदर कविता