सादा जीवन पर कविता –मनीभाई नवरत्न
एक ओर रंगशाला
दूसरी ओर रंग सादा।
कोई टक्कर नहीं जिनके बीच
कौन सुरमा है ज्यादा?
वैसे ख्याति विविध रंगों की है
हरा लाल पीला नीला
ये ना होते तो
कहने वाले राय में
दुनिया बेरंग होती ।
पर जरा सोचो तो
रंगों की उत्पत्ति कहां से हुई ?
प्रकृति की छटा बिखेरती इंद्रधनुष
कैसे प्रकट हुआ ?
सूर्य की श्वेत रश्मि अदृश्य होते हुए
सब जगह है ।
पर खिलती है विविध रंग
अहा कितना नाम है इनका
श्रेष्ठता का आधार लोकप्रियता
भले ही माने संसार ।
पर सत्य नहीं बदल जाता ।
सफेद, इसे महत्व नहीं देता ।
वह कभी फरियादी नहीं रहा
दूजे रंग करते हैं प्रहार सदा से।
पर चिर मौन सफेद
सुनता रहता उलाहना शब्द “बेरंग” ।
सादा रह पाना
कम चुनौतीपूर्ण नहीं है ।
क्या कभी नहीं धोया
अपनी सफेद कमीज ?
सादा होना कमजोर कड़ी नहीं
दूजा रंग ज्यादा निखरे
इसलिए सदा से शहीद होता आया है
सफेद रंग ।
इसकी अहमियत को नेताओं ने
बखूबी समझा ।
यूं ही नहीं होती
उनके वसन सफेद ।
कफन का रंग
जीवन की सच्चाई बताता ।
कागज का रंग
बयान नहीं बदलता ।
रात्रि में सफेद गाड़ी
बुरा हादसा कम करते
भागमभाग जीवन में ।
अरे भाई !
बिजली का बिल कम किया
सफेद प्रकाश ने ।
नाहक लोग
रंगीनी को देख कर मरते हैं।
रंगीन आहार
रंगीन विहार
रंगीन विचार
कोई सादा होना नहीं चाहता
सादा सच्चाई का प्रतीक है
झूठ का रंग दिख जाएगा इसमें
इसलिए कम भाता है लोगों को
सादा जीवन।
मनीभाई नवरत्न