घर वापसी
नित नित शाम को,
सूरज पश्चिम जाता है।
श्रम पथ का जातक
फिर अपने घर आता है।
भूल जाते हैं बातें
थकान और तनाव की ,
अपने को जब जब
परिवार के बीच पाता है।
पंछियों की तरह चहकते
घर का हर सदस्य,
घर का छत भी
तब अम्बर नजर आता है।
कल्प-वृक्ष की ठंडकता भी
फीकी सी लगने लगे
शीतल पानी का गिलास
जब सामने आता है।
सबके आँगन खुशी झूमें
हर सुबह हर शाम,
राम जानें मन में मेरे,
विचार ऐसा क्यों आता है?
वत्स महसूस कर
उस विधाता की मौजूदगी,
हर दिवस की शाम
जो शुभ संध्या बनाता है।
–राजेश पान्डेय वत्स
कार्तिक कृष्ण सप्तमी
2076 सम्वत् 21/10/19
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद