जीत मरण को वीर
● भवानी प्रसाद तिवारी
जीत मरण को वीर, राष्ट्र को जीवन दान करो,
समर-खेत के बीच अभय हो मंगल-गान करो।
भारत माँ के मुकुट छीनने आया दस्यु विदेशी,
ब्रह्मपुत्र के तीर पछाड़ो, उघड़ जाए छल वेशी।
जन्मसिद्ध अधिकार बचाओ, सह-अभियान करो,
समर खेत के बीच, अभय हो, मंगल-गान करो।
क्या विवाद में उलझ रहे हो हिंसा या कि अहिंसा ?
कायरता से श्रेयस्कर है छल-प्रतिकारी हिंसा ।
रक्षक शस्त्र सदा वंचित है, द्रुत संधान करो,
समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
कालनेमि ने कपट किया, पवनज ने किया भरोसा,
साक्षी है इतिहास विश्व में किसका कौन भरोसा ।
है विजयी विश्वास ‘ग्लानि’ का अभ्युत्थान करो,
समर खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
महाकाल की पाद भूमि है, रक्त-सुरा का प्याला,
पीकर प्रहरी नाच रहा है देशप्रेम मतवाला ।
चलो, चलो रे, हम भी नाचें, नग्न कृपाण करो,
समर खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
आज मृत्यु से जूझ राष्ट्र को जीवन दान करो,
रण खेतों के बीच अभय हो मंगल-गान करो।
सबकी प्यारी भूमि हमारी
० कमला प्रसाद द्विवेदी
सबकी प्यारी भूमि हमारी, धनी और कंगाल की ।
जिस धरती पर गई बिखेरी, राख जवाहरलाल की ॥
दबी नहीं वह क्रांति हमारी, बुझी नहीं चिनगारी है।
आज शहीदों की समाधि वह, फिर से तुम्हें पुकारी है।
इस ढेरी को राख न समझो, इसमें लपटें ज्वाल की ।
जिस धरती पर … ॥१॥
जो अनंत में शीश उठाएं, प्रहरी बन था जाग रहा।
प्राणों के विनिमय में अपना, पुरस्कार है माँग रहा।
आज बज गई रण की श्रृंगी, महाकाल के काल की ।
जिस धरती पर… ॥२॥
जिसके लिए कनक नगरी में, तूने आग लगाई है।
जिसके लिए धरा के नीचे, खोदी तूने खाई है।
सगर सुतों की राख जगाती, तुझे आज पाताल की।
जिस धरती पर … ॥ ३॥
रण का मंत्र हुआ उद्घोषित, स्वाहा बोल बढ़ो आगे ।
हर भारतवासी बलि होगा, आओ चलो, चढ़ो आगे।
भूल न इसको धूल समझना, यह विभूति है भाल की।
जिस धरती पर… ॥४..
बज उठी रण-भेरी
● शिवमंगलसिंह ‘सुमन’
मां कब से खड़ी पुकार रही,
पुत्रों, निज कर में शस्त्र गहो ।
सेनापति की आवाज हुई,
तैयार रहो, तैयार रहो ।
आओ तुम भी दो आज बिदा, अब क्या अड़चन, अब क्या देरी ?
लो, आज बज उठी रण-भेरी ।
अब बढ़े चलो अब बढ़े चलो,
निर्भय हो जय के गान करो।
सदियों में अवसर आया है,
बलिदानी, अब बलिदान करो।
फिर मां का दूध उमड़ आया बहनें देतीं मंगल-फेरी !
लो, आज बज उठी रण-भेरी।
जलने दो जौहर की ज्वाला,
अब पहनो केसरिया बाना |
आपस की कलह-डाह छोड़ो,
तुमको शहीद बनने जाना ।
जो बिना विजय वापस आये मां आज शपथ उसको तेरी !
लो, आज बज उठी रण-भेरी।