जलती धरती /डॉ0 रामबली मिश्र
सूर्य उगलता है अंगारा।
जलता सारा जग नित न्यारा।।
तपिश बहुत बढ़ गयी आज है।
प्रकृति दुखी अतिशय नराज है।।
मानव हुआ आज अन्यायी।
नहीं रहा अब वह है न्यायी।।
जंगल का हत्यारा मानव।
शोषणकारी अब है दानव।।
नदियों के प्रवाह को रोका।
पर्वत की गरिमा को टोका।।
विकृत किया प्रकृति की रचना।
नित असंतुलित अधिसंरचना।।
ओजोन परत फटा दीखता।
अतीव गर्म वायु अब लगता।।
जलता जल तरुवर मरु धरती।
जलता मानव पृथ्वी जलती।।
डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी उत्तर प्रदेश