मोबाइल महाराज

मोबाइल महाराज

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जय हो तुम्हारी हे मोबाइल महाराज
तकनीकि युग के तुम ही हो सरताज
बिन भोजन  दिन कट जाता है
पर तुम बिन क्षण पल नहीं न आज।
हे मोबाइल तुम बिन सुबह न होवे
तुम संग आॅनलाइन रह सकें पूरी रात
गुडमार्निंग से लेकर गुडनाइट का सफर
मैसेज में ही होती अच्छी बुरी हर बात।
हर पल आरजू मोबाइल महाराज की
मिलता नहीं बेकरार दिल को चैन
ललक रहती जाने कौन संदेशा आयो
मोबाइल से हसीन मेरे दिन रैन।
कक्षा में हूँ जाती पढ़ाने बिन मोबाइल जग सून
दिल सोचता काश मेरे पास भी जेब होता
घर्र घर्र  काँप कर अपना एहसास दिलाता
अवसर पाते ही मेरे सामने नया संदेशा होता।
छुट्टी होते ही मोबाइल की पहली तमन्ना
हाथ में विराजते हैं मोबाइल महाराज
बस फिर तो रम जाते हम तन मन से
भूल जाते  हम सारे जरूरी काम काज।
गाड़ी चलाते समय बगल में हमारे
सुशोभित रहते मोबाइल महाराज
लाल बत्ती का भी सदुपयोग करते
व्हाटसअप खोलने से नहीं आते बाज।
घर आकर खाना सोना देता नहीं आराम
मोबाइल को नहीं देते पल भर भी विश्राम
नींद सताए तो तकिए में मोबाइल रहता साथ
मोबाइल ही साथी अपना मोबाइल अपना धाम।
कुसुम लता पुंडोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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