मेरी सोच

   मेरी सोच

तुम्हारी सोच से अलग
मेरी सोच
तुम्हारे विचारों से जुदा
मेरी भावनाएँ
तुम्हारे रक्त से भिन्न
मेरे खून का रंग
और ….
तुम्हारे चेहरे के विपरित
मेरी परछाई का कद
इस विश्व के उस पार भी
कोई दुनिया बसती है
इस ब्रह्माण्ड से दूर
बहुत दूर ….
जहाँ कोई मसीहा रहता है
और जहाँ ….
अनाज और रोटियों का
भंडारा सा लगा रहता है
कल-कल निर्मल जल का
एक दरिया सा बहता है
न कोई भूखा सोता है
न कोई प्यासा मरता है
सचमुच!
मेरी सोच के दायरे में
तुम्हारा बनावटी संसार
कितना छोटा सा लगता है  ।


रचनाकार ~


प्रकाश गुप्ता ”हमसफ़र”


युवा कवि एवं साहित्यकार
     (स्वतंत्र लेखन)
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