फिर जली एक दुल्हन

फिर जली एक दुल्हन


शादी का लाल जोड़ा पहन,
ससुराल आई एक दुल्हन,
आंखों में सजाकर ख्वाब,
खुशियों में होकर मगन!

रोज सुबह घबरा सी जाती,
बन्द सी हो जाती धड़कन,
ना जाने कब बन जाये,
लाल जोड़ा मेरा कफ़न!


फिरभी सींचे प्यार से,
अपना छोटा सा चमन,
खुशियों से महके आँगन,
नित नए खिलते सुमन!


एक रोज अखबार देखा,
आज भी अग्नि-दहन,
दहेज की ही खातिर,
फिर जली एक दुल्हन….


—डॉ पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)

You might also like