प्रातःकाल पर कविता
श्याम जलद की ओढ
चुनरिया प्राची मुस्काई।
ऊषा भी अवगुण्ठन में
रंगों संग नहीं आ पाई।
सोई हुई बालरवि किरणे
अर्ध निमीलित अलसाई।
छितराये बदरा संग खेले
भुवन भास्कर छवि छाई।
नीड़ छोड़ चली अब तो
पंछियों की सुरमई पाँत।
हर मौसम में रहें कर्मरत
समझा जाती है यह बात।
पुष्पा शर्मा “कुसुम”