धीरे धीरे पर कविता-मनोज बाथरे

धीरे धीरे पर कविता

बिखरती हुई जिंदगी
वीरान सी राहें
समय गुजर रहा है
धीरे धीरे
हम अपने अस्तित्व की
तलाश में
निकल पड़े उन
राहों पर
मन विचलित है
उदास है
फिर भी कर रहे हैं
मंजिलें तलाश हम
धीरे धीरे

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