मेरी अभिलाषा है -द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
सूरज-सा दमकूँ मैं
चंदा-सा चमकूँ मैं
झलमल-झलमल उज्ज्वल
तारों-सा दमकूँ मैं
मेरी अभिलाषा है।
फूलों-सा महकूँ मैं
विहगों-सा चहकूँ मैं
गुंजित कर वन-उपवन
कोयल-सा कुहकूँ मैं
मेरी अभिलाषा है।
नभ से निर्मलता लूँ
शशि से शीतलता लूँ
धरती से सहनशक्ति
पर्वत से दृढ़ता लूँ
मेरी अभिलाषा है।
मेघों-सा मिट जाऊँ
सागर-सा लहराऊँ
सेवा के पथ पर मैं
सुमनों-सा बिछ जाऊँ
मेरी अभिलाषा है।
-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी