Author: कविता बहार

  • पीर दिलों की मिटायें

    पीर दिलों की मिटायें

    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें
    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
    पलती हों जहां खुशियाँ, चलो एक ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

    हर एक चहरे पर हो मुस्कान, ना हो ग़मों का कोई निशान l
    फेहरे जहां संस्कृति, संस्कारों का परचम, चलो एक ऐसा उपवन सजाएँ ll

    जहां ना हो कोई कुटिल राजनीति का शिकार, ना ही अंधभक्ति सिर चढ़कर बोले l
    सादा हो जीवन, सदविचारों से पुष्पित, चलो एक ऐसा गुलशन सजाएँ ll

    जहां ना हो कोई नवजात, कूड़े के ढेर का हिस्सा l
    चलो मातृत्व के वात्सल्य से पोषित एक खूबसूरत जहां बसायें ll

    भाई को भाई से हो मुहब्बत, रिश्तों में पावनता झलके l
    चलो पारिवारिक संस्कृति और संस्कारों का परचम लहरायें ll

    हो चहरों पर मुस्कान, दिलों में ना गिला शिकवा हो l
    चलो आपसी मुहब्बत से रोशन एक आशियाँ सजाएँ ll

    जहां राम ना रहीम को लेकर हो वैमनस्य मन में l
    चलो राम और रहीम की पावन छवि से अपना आशियाँ सजाएँ ll

    एक ऐसा जहां ना पलती हो राजनीति, ना हो धर्म पर अंधविश्वास l
    अपनी इस धरा को, उपवन को एक खूबसूरत उपवन बनाएं ll

    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
    पलती हों जहां खुशियाँ, चलो ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

    अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

  • रंग इन्द्रधनुष

    रंग इन्द्रधनुष …..

    धरती का हरापन सदा से बुलाते रहे मुझे
    मैं उसके आँचल में दूब बनकर पसर गया ,
    नीला विस्तृत आकाश हुर्र बुलाता रहा मुझे
    मैं उसमें घुसकर नीलकंठ हो गया ,
    मैं उनकी गली के गुलाबी रंग बीच
    प्रेम प्याला पीकर महक गया ;
    युवा बसंत को सजाते हुए कभी
    काँपे नहीं मेरे हाथ लेकिन
    अपनी बेटी को विदा करते हुए रो रहा हूँ |

    रंगों की भाषा समझने निकला था मैं
    अपने जीवन का कोरा कागज़ लेकर
    वक्त के मौसम रंगते रहे मुझे और
    अंत में बचा तो सिर्फ स्याह बुढ़ापा ,
    रंगों से संवाद करने घुस पड़ा था मैं
    सतपुड़ा के घने जंगलों सी दुनिया में
    डर गया मैं गांवों को
    शहरी लिबास पहनते देखकर |

    समय के पुस्तकालय में नहीं पाया मैंने
    हवा – पानी का रंग लेकिन
    इसके सिर फुटौव्वल का रंग लाल देखा ,
    गिरगिट और वैश्या के रंग बदलने को
    मैंने दूध – भात दिया हुआ है लेकिन
    आम लोगों के बदलते रंग देखकर
    सेंसेक्स के सांड की तरह बिदक जाता हूँ मैं |

    जिंदगी का इन्द्रधनुष
    रँग बाँटकर गुम हो चुका था
    मैं अपने गाँव में नदी किनारे
    दहकती चिता में शांति से लेटा रहा
    लोग लौट रहे थे अपनी जिंदगी का रंग ढूँढने
    मुझे मेरे गाँव का देहाती रंग सदा से भाया है
    मेरा आखिरी गुमान यह देखकर हैरान था कि –
    किसी के मर जाने से दुनिया नहीं थमती |
    ….. …….
    रमेश कुमार सोनी
    रायपुर

  • हमर छेरछेरा तिहार पर कविता

    गीत – हमर छेरछेरा तिहार

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    सुख के सुरुज अंजोर करे हे,हम सबझन के डेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।।
    //1//
    आज जम्मो झन बड़े बिहनिया, ले छेरछेरा कुटत हे।
    कोनलईका अउ कोन सियनहा,कोनो भी नई छूटत हे।
    ये तिहार म सब मितान हे,इही हमर पहचान हावय।
    मनखे मन ल खुशी देवैईया,सोनहा सुघ्घर बिहान हावय।
    है जुगजुग ले छत्तीसगढ़ ह, सुख सुमता के घेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।।
    //2//
    थोरको फुरसद आज कहा हे,घर म हमर सुवारी ल।
    सुतउठ के लिपे हावय , घर अउ जमो दुवारी ल।
    रंग – रंग के रोटी पीठा , घर म बईठ चुरोवत हे।
    छेरछेरा बर टुकना-टुकना, ठीन्ना धान पुरोवत हे।
    अबड़ मंजा करथें लईका मन,ये तिहार के फेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

  • सादगी पर सायरी

    सादगी पर सायरी

    सादगी की सुरत सुहानी
    बनावट की बातों का काम नहीं है।
    सादगी की खुबसूरत जवानी
    बेतहासा सजावट का काम नहीं है।
    सादगी की जरूरत जिसने जानी
    अधिक जरूरत का कोई काम नहीं है।
    सादगी की है सफल कहानी
    सफर में थकावट का काम नहीं है।

    राजीव कुमार
    बोकारो स्टील सिटी
    झारखण्ड
    8797905224

  • मन पर कविता

    मन पर कविता

    मन सरिता बहाती कलकल
    स्वछन्द वेग से तेरी स्मृतियों का जल।
    मन सरिता की गहराई अथाह
    तेरी स्मृतियों का ही रखरखाव।
    मन सरिता की लहरें अशांत
    कभी न चाहे तेरी स्मृतियों का अंत।
    मन सरिता का जहाँ भी मोड़
    तेरी स्मृति का ही एक छोर।
    मन सरिता की अतृप्त प्यास
    तेरी स्मृति जल की ही आस।
    मन सरिता का जीवित मतस्य
    खान-पान का तेरी स्मृतियां रहस्य।

    राजीव कुमार
    बोकारो स्टील सिटी
    झारखण्ड
    8797905224