Author: कविता बहार

  • वक्त पर कविता

    वक्त पर कविता

    पलटी खाता वक्त बेवक्त,
    मुंह बिचका के चिढ़ाता है।
    किया धरा पानी फिराता,
    वक्त ओंधे मुंह गिराता है।।

    सगा नहीं किसी का वक्त,
    हर वक्त चलता रहता है।
    कभी धूप कभी छांव सा,
    स्वरूप बदलता रहता है।।

    कच्ची धूप ओस की बूंद,
    प्रकृति को निहलाती है।
    तेज़ धूप झुलसाती तपन,
    अंत में ख़ुद ढल जाती है।।

    वक्त का मारा हारा मानव,
    हताश निराश हो जाता है।
    हिम्मत धैर्य रखनेवाला ही,
    बुरे वक्त पर विजय पाता है।।

  • जीवन का पथ

    जीवन का पथ

    दूर भले हो पथ जीवन का
    त्याग हौसिला कभी न मन का
    चलना सीखो अपने पथ पर
    चलते चलना बढ़ हर पग पर

    आलस में ना समय गवांना
    बिना अर्थ ना समय बिताना
    लक्ष्य तभी जब ना पाओगे
    मलते हाथ ही रह जाओगे

    सुख दु:ख दोनों मिलते पथ में
    संग चले जीवन के रथ में
    सुख में अक्सर खो जाते हम
    दिक् भर्मित सा हो जाते हम

    खुद विचार लो अपने मन में
    क्या कुछ पाओगे जीवन में?
    मलते हाथ न वापस आओ
    पथ पर अपने बढ़ते जाओ

    पहले यदि सुख गले लगेगा
    सुख वैभव आनन्द मिलेगा
    समय बाद में दुःख आयेगा
    शेष समय दुःख में जायेगा

    क्यों न पहले दुःख अपनाएं
    इससे तनिक नही घबड़ाएं
    पथ में कंकड़ पत्थर आते
    बस केवल ठोकर दे जाते

    धूल तनिक हम पर हैं आते
    रोक नही ये हमको पाते

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

  • चली चली रे रेलगाड़ी

    चली चली रे रेलगाड़ी

    छुक छुक छुक छुक
    छुक छुक छुक छुक
    झटपट बना ली गाड़ी
    चली चली रे देखो चली
    रेलगाड़ी रेलगाड़ी
    देखो बच्चों की निकली सवारी
    देखो बच्चों की निकली सवारी

    लपेट लपेट ऐसा मोड़ा
    दोनों पल्लू साथ में जोड़ा
    देखो रस्सी बन गई साड़ी
    चली चली रे देखो चली
    रेलगाड़ी रेलगाड़ी
    देखो बच्चों की निकली सवारी
    देखो बच्चों की निकली सवारी

    रंग -बिरंगी पोशाकें पहने
    पंक्ति बनाकर लग गए घुसने
    मुन्नी ने कसकर सीटी मारी
    चली चली रे देखो चली
    रेलगाड़ी रेलगाड़ी
    देखो बच्चों की निकली सवारी
    देखो बच्चों की निकली सवारी

    काँधे पर काँधा रखा है सबने
    बोगी से इंजन जोड़ा है सबने
    बड़ी न्यारी है इनकी यारी
    चली चली रे देखो चली
    रेलगाड़ी रेलगाड़ी
    देखो बच्चों की निकली सवारी
    देखो बच्चों की निकली सवारी

    सरपट सरपट भागे है इंजन
    घुमा रहा है हर एक स्टेशन
    पीछे है पलटन भारी
    चली चली रे देखो चली
    रेलगाड़ी रेलगाड़ी
    देखो बच्चों की निकली सवारी
    देखो बच्चों की निकली सवारी

    • आशीष कुमार 
  • दिल का पैगाम

    दिल का पैगाम

    भेज रहा हूँ पैगाम तुझको
    आँखें मिलाकर आँखों से
    चेहरा पढ़कर महसूस कर ले
    जो समझा न सके अपनी बातों से

    ना समझना इसे कोरा कागज
    ना तौलना इसे लहू के नातों से
    है पैगाम हमारा वफा-ए-इश्क
    जो लिखा है दिल के जज्बातों से

    इसमें लगी है प्यार की स्याही
    पैगाम भरा है चाहतों से
    समझी अगर यह प्रेम की भाषा
    पढ़ लूँगा तेरी खिलखिलाहटों से

    पसंद आए अगर पैगाम हमारा
    भेजना जवाब अपनी आँखों से
    मिलने आ जाऊँगा सपने में तेरे
    मैं सोया नहीं हूँ कई रातों से

    दिल का पैगाम दिल ही समझे
    समझेगी तू भी दिल के हालातों से
    कर दे तू भी हाल-ए-दिल बयां
    भरता नहीं दिल जरा सी मुलाकातों से

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • एक मुस्कान

    एक मुस्कान

    मनुजता शूचिता शुभता,खुशियों की पहचान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
    इसी बिटिया से ही खुशियाँ,सतत उत्थान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े,पर धवल मुस्कान होती है।

    सदन में हर्ष था उस दिन,सुता जिस दिन पधारी थी।
    दिया जिसने पिता का नाम,यह बिटिया दुलारी थी।
    महा लक्ष्मी यही बेटी,यही वात्सल्य की दानी।
    सदा झंडा गड़ाती है,सुता जिस दिन जहाँ ठानी।
    मिटाने हर कलुषता को,सुता को ज्ञान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।

    यही बंदूक थामी है,जहाजे भी उड़ाती है।
    यही दो कुल सँवारी है,यही सबको पढ़ाती है।
    सुता सौंधिल मृदुल माटी, सुता परित्राण की घाटी।
    सुता से ही सदा सजती,सुखद परिवार परिपाटी।
    मगर क्योंकर पिता के घर,सुता मेहमान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
    ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर” ✍️✍️✍️