Author: कविता बहार

  • दर्शन दे द मैया- भोजपुरी देवी गीत

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं।

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    दर्शन दे द मैया – भोजपुरी देवी गीत

    कहवाँ रहेलू मैया
    खोजेला बलकवा
    तोहरे दरश खातिर
    उठेला ललकवा
    तोहरा बिना मैया
    जिंदगी भईल बा उजाड़
    हो…..
    दर्शन दे द मैया
    होई के तू शेर पर सवार

    अड़हूल बेला के
    लगइनी फुलवारी
    माला ले के अइनी
    शरण तिहारी
    अपना अचरवा से
    बरसाईऽ द पिरितिया अपार
    हो…..
    दर्शन दे द मैया
    होई के तू शेर पर सवार

    हमरा लागे मैया
    कुछुवो ना बा हो
    भक्ति तू देखऽ मैया
    जियरा में बा हो
    कहवाँ से करीं हम
    धूप बाती के जुगाड़
    हो…..
    दर्शन दे द मैया
    होई के तू शेर पर सवार

    सब भक्तन के तू
    लाज रखेलू
    बिगड़ी बनावेलू तू
    दुखवा हरेलू
    हमरो जिनगिया के
    करी द ना तू उजियार
    हो…..
    दर्शन दे द मैया
    होई के तू शेर पर सवार

    माया मोह से
    मुक्ति दिला द
    भवसागर से तू
    पार लगा द
    देइ द आशीष मैया
    करी द तू हमरो उद्धार
    हो…..
    दर्शन दे द मैया
    होई के तू शेर पर सवार

    – आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • आश्विन नवरात्रि पर विशेष गीत

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

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    आश्विन नवरात्रि पर विशेष गीत

    जय हो जय हो दुर्गे मैया महाशक्ति अवतारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।।

    करने से नित अर्चन वंदन जीवन धन हो जाता।
    पद सेवामें लगकर सभी मनोवांछित फल पाता।
    देव, दनुज,मानव सभी को माँ पूजन तेरा भाता।
    अग-जगमें सभी के माता तुम्हींहो भाग्यविधाता।

    सभयअभय पलमें करती तुम्ही हो करूणा कारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।।

    खप्पर त्रिशूल कटार करमें गले मध्य मुंड माला।
    रौद्र रूप विकराल तुम्हारा अद्भुत तेरी माया।
    रक्षक है भैरव भैया सदा बने तुम्हारी छाया।
    फट जाती दुश्मन की छाती देख तुम्हारी काया।

    टारो सभी अंधेर हे माँ करती बाघ सवारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।

    दुर्गति नाशिनी दुर्गामाता निज दयादृष्टि घुमाओ।
    वाणी बुद्धि विचार जगतमें सबका शुद्ध बनाओ।
    भटके जो हैं सत्य राह से उनको पथ पर लाओ।
    बढ़े परस्पर प्यार सभी में ऐसा ज्योति जलाओ।

    रहकर मानवता मध्य सब कोई बने अविकारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।

    विष्णु सदा शिव अज नारद जी तेरी महिमा गाते।
    आरत भाव शरण में आके देव भी सिर झुकाते।
    करती रक्षा जब जाकर माता फूले नहीं समाते।
    चढ़ विमान आकाश पथ से खुशी हो फूल वर्षाते।

    अमन चैन से सिंच रही हो त्रिलोक की फूलवारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।

    कालीदास दर्शन कर माता जीवन धन्य बनाये।
    आल्हा उदल नित पूजन करी शूर वीर कहलाये।
    तरे असंख्य जन दर्शन पा सम्भव कहाँ गिनाये।
    धन्य वहीं मानव है जग में जो तेरा गुण गाये।

    महिमा तेरी गजब निराली क्या जाने संसारी।
    भक्ति भाव से पूजन करने आया शरण तुम्हारी।


    बाबुराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032

  • कन्या पूजन पर कविता

    कन्या पूजन पर कविता –दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

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    कन्या पूजन पर कविता

    नव दुर्गा के नौ रूपों का
    मैं करता कन्या पूजन
    आई है मैया कन्या रूप में
    मेरा जीवन हो गया पावन

    आदर सहित मैया को मैंने
    दिया है ऊँचा आसन
    भक्ति भाव से पाँव पखारू
    हो जाऊँ तुम पर अर्पण

    लाल चुनरिया सर पर ओढाया
    माथे कुमकुम टीका लगाया
    फूलों की माला पहनाकर
    हाथ जोड़ कर शीश झुकाया

    मन की ज्योत जलाई मैंने
    हृदय से आरती उतारी मैंने
    हलवा पुरी का भोग लगा कर
    श्रद्धा सुमन चढ़ाई मैंने

    सौभाग्य होता मेरा मैया
    होता जो तेरा सिंह वाहन
    नतमस्तक हो बैठा रहता
    करता नित्य ही दर्शन

    दे दो आशीष मुझको मैया
    मैं करता रहूँ तेरा वंदन
    नव दुर्गा के नौ रूपों का
    मैं करता कन्या पूजन

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • भाग्य मुकद्दर नसीब पर कविता

    भाग्य/मुकद्दर/नसीब पर कविता- सोरठा छंद

    कर्म लिखे का खेल, भाग्य भूमि जन देश का।
    कौरव कुल दल मेल, करा न माधव भी सके।।

    लक्ष्मण सीताराम, भाग्य लेख वनवास था।
    छूट गये धन धाम, राजतिलक भूले सभी।।

    पांचाली के भाग्य, पाँच पति जगजीत थे।
    भोगे वन वैराग्य, कृष्ण सखी जलती रही।।

    कहते यही सुजान, भाग्य बदलते कर्म से।
    जग में बने महान, मनुज कर्म मानस धरे।।

    लिखते हल की नोंक, ये किसान भूभाग्य को।
    कैसे रहे अशोक, भाग्य न अपने लिख सके।।

    करे फैसला वोट, सरकारों के भाग्य का।
    कुछ पहुंचाते चोट, करे लोक कल्याण भी।।

    भाग्य भरोसे मान, खेती करे किसान जो।
    यह कैसा विज्ञान, प्रतिदिन घाटा खा रहे।।

    आदि सनातन बोल, गौ को सब माता कहे।
    रही सड़क पर डोल, कर्म भाग्य संयोग से।।

    भारत रहा गुलाम, भाग्य भरोसे देश जन।
    जब चेता आवाम, आजादी तब मिल गई।।

    जग में लोग गरीब, भाग्य भरोसे ही रहे।
    कोई चढ़े सलीब, मिले किसी को ताज है।।

    हरिश्चन्द्र हो रंक, भाग्य और संयोग से।
    बने भाग्य से कंक, धर्मराज बैराठ में।।

    करे कृष्ण कल्याण, भाग्य काल संयोग से।
    वही पार्थ के बाण, भील लूटले गोपिका।।

    बन जाते संयोग, भाग्य मानवी कर्म से।
    कोई छप्पन भोग, कोई भोगे शोक नित।।

    भाव जगे वैराग्य, कर्म करो निष्काम तब।
    पुरुषार्थी सौभाग्य, सतत परिश्रम से बने।।

    करिए सतत सुकर्म, भाग्य भरोसे मत रहो।
    सभी निभाओ धर्म, मिले भाग्य से देह नर।।

    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    9782924479

  • तथाकथित श्रेष्ठता

    तथाकथित श्रेष्ठता

    मुंडेर को था घमंड
    अपनी श्रेष्ठता पर

    देहली पर बड़ी इतराई
    बड़ी लफ्फाजी की
    बड़ी तानाकशी की
    अपनी उच्चता के
    मनगढ़ंत दिए प्रमाण

    ताउम्र उसी देहली पर
    चढ़कर खड़ी रही मुंडेर
    जिसको वह
    कमतर व नीची
    कहती न थकी

    एक दिन आया जलजला
    चरमरा कर ढह गई मुंडेर
    आ कर गीरी
    देहली के पास

    छू मंत्र हो गई
    तथाकथित श्रेष्ठता।

    -विनोद सिल्ला