नारी की सुन्दरता पर कविता
नीति नियामक हाय विधायक,
भाग्य कठोर लिखे हित नारी।
सत्य सदा दिन रात करे श्रम,
वारि भरे घट ले पनिहारी।
पंथ चले पद त्राण नहीं पग,
कंटक कष्ट हुई पथ हारी।
‘विज्ञ’ निहार अचंभित मानस,
सुंदर नारि कि सुंदर सारी।
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केश खुले घन कृष्ण घटा सम,
ले घट हाथ टिका कटि धारे।
गौर शरीर लगे अति कोमल,
नैन झुके पर हैं कजरारे।
कंगन हाथ सजे शुभ सुंदर,
वस्त्र सुशोभित हैं रतनारे।
कंटक पंथ लगे तिय शापित,
‘विज्ञ’ विवेक लिखे हिय हारे।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान
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