Author: कविता बहार

  • धूप पर कविता – पुष्पा शर्मा

    धूप पर कविता – पुष्पा शर्मा

    धूप पर कविता - पुष्पा शर्मा
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    कोहरे की गाढी ओढनी
    हिमांकित रजत किनारी लगी।
    ठिठुरन का संग साथ लिया
    सोई  रजनी अंधकार पगी।

    ऊषा के अनुपम रंगों ने
    सजाई अनुपम रंगोली,
    अवगुण्ठन हटा होले से
    धूप आई ,ले किरण टोली।

    इठलाती बलखाती सी वो
    सब ओर छा रही है, धूप।
    नर्म सी सबको सहलाती
    भाया इसका रूप अनूप ।

    नव जीवन  संचार करती
    सृष्टि क्रम बाधा सब हरती
    हर पल हर घड़ी तत्पर रह
    रवि का साथ निभाती धूप।

    कर्म पथ चलने को कहती,
    बचाती है ,ठिठुरन से धूप ।
    बड़ी सुहानी ,प्यारी लगती
    इस ठंड में ,गुनगुनाती धूप ।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • पुष्पा शर्मा की गीतिका – पुष्पा शर्मा

    पुष्पा शर्मा की गीतिका – पुष्पा शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नज़र अंदाज़ करते हैं गरीबी को सभी अब तो।
    भुलाकर के दया ममता सधा स्वारथ रहे अब तो।

    अहं में फूल कर चलता कभी नीचे नहीं देखा,
    मिले जब सीख दुनियाँ में लगे ठोकर कभी अब तो।

    बदल देता नज़ारा है सुई जब वक्त की घूमे,
    भले कितना करें अफ़सोस समय लौटे नहीं अब तो।

    गुज़ारा कर गरीबी में समझता पीर दुखियों की।
    लगा कर के गले उनको दिखाता विकलता अब तो। 

    सदा जीवन नहीं रहता लगो कुछ नेक कामों में,
    भरोसा कब कहाँ रहता मिटे पल में निशां अब तो।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • छत्तीसगढ़ पर कविता – पंकज

    छत्तीसगढ़ महिमा – पंकज

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    छत्तीसगढ़  महतारी मोर छत्तीसगढ़  महतारी।
    तोर  कोरा म  रहिथे दाई  दाता अउ भिखारी।
    उत्तर म  सरगुजा  हावे स्वर्ग  समान  कहाथे।
    दक्षिण म केशकाल के घाटी सबके मन ल मोहाथे।
    पश्चिम  म  मैकल  पर्वत  हे बैगा  मन के डेरा।
    अउ पूरब  म अब्बड़ ऊँचा  जशपुर क्षेत्र पठारी।
    छत्तीसगढ़  महतारी


    महानदी ल गंगा कहिथे सबके प्यास बुझाथे।
    डोंगरगढ़ बमलाई म चढ़ के मन हर्षित हो जाथे।
    राजिम के महिमा बड़ भारी प्रयाग राज कहाथे।
    रतनपुर  महामाया  गौरव गाथे सब नर नारी।
    छत्तीसगढ़ महतारी
                           
    ये  भुइँया  म दबे  पड़े  कोयला लोहा के खान।
    मनखे  मन  के बोली  म हे  भरे  कटोरा धान।
    कोरबा के बिजली ले जगमग होंगे हिंदुस्तान।
    नरवा मन के जाल बिछे हे होथे आठो माह निस्तारी।
    छत्तीसगढ़ महतारी
       
                   ‘पंकज’

  • प्रेमिका के लिए कविता – नेहा चाचरा बहल

    प्रेमिका के लिए कविता –

    न जाने क्यों आज तुम्हे देखने का बड़ा मन है
    लिख कर जज़्बात खत में तुम्हे भेजने का बड़ा मन है

    हाथों में हाथ डाले हम तुम भी घूमते थे
    फ़ुरसत के उन पलों को ढूंढने का बड़ा मन है

    कागज़ में नाम लिख कर कभी उसको फाड़ते थे
    तेरे नाम के वो ही पन्ने समेटने का बड़ा मन है

    उस वक़्त जब तू मुझको दिल फेंक बोलती थी
    आज फ़िर से तुमपे ये दिल फेंकने का बड़ा मन है

    हम जिनमें में देखते थे गहरा सा इक समुंदर
    उन आँखों में कसम से डूबने के बड़ा मन है

    कभी आ तू पास मेरे मुझको गले लगा ले
    तेरी बाहों में पिघलकर टूटने का बड़ा मन है

    जब जब था तुमको देखा बेख़ुद से हो गए थे
    तेरे प्यार में फ़िर से बहकने का बड़ा मन है

    हमने सुना है कि तुम बस प्यार बांटते हो
    दरिया दिली तुम्हारी लूटने का बड़ा मन है

    तुझसे ही सुख के पल थे अब तो हैं दुख की घड़ियां
    कांधे पे सर ये रखकर सिसकने का बड़ा मन है

    जिसे देख हम हैं जीते दिलकश तेरा तबस्सुम
    मुस्काते उन लबों को चूमने का बड़ा मन है

    ‘चाहत’ भरी निगाह से बस मुझको देख लेना
    तेरी चाहतों में फ़िर से भीगने का बड़ा मन है

    **************************************

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • परिवर्तन पर कविता – पुष्पा शर्मा

    परिवर्तन पर कविता – पुष्पा शर्मा

    परिवर्तन पर कविता - पुष्पा शर्मा
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    परिवर्तन अवश्यंभावी है,  
    क्योंकि यह सृष्टि  का नियम है।
    नित नये अनुसंधान का क्रम है।
    सतत श्रम शील मानव का श्रम है।


    परिवर्तन   ज्ञान, विज्ञान में
    परिवर्तन मौसम के बदलाव में
    संसाधनों  की उपलब्धियों की होड़ में।
    परिवर्तन परिवार में
    समाज राज्य देश में।


    हर रीति और रिवाज   में खान पान पहनावे में
    नित नया उत्साह  देता,
    जीवन  में खुशियाँ भर देता।
    बदले फल फूल के रंग स्वाद भले
    किंतु  जड़ जमी रहे मिट्टी तले।


    संभल पायेगा तभी आँधी
    और तूफान से,
    सधा रह बच सकेगा
    विप्लव  की बाढ से।


    आग भी उसको जला
    नहीं पायेगी
    जड़ों की नमी उसे हर हाल में बचायेगी।
    हमारी संस्कृति भी हमारी जड़ें हैं।


    हमारा  अस्तित्व है,पहचान है।
    जिसके  बल दुनियाँ में आज खड़े हैं।
    हमारे आदर्श आज भी हमारे हैं
    जग विकृतियों को  कई बार सुधारे हैं।


    उनसे  जुड़े रहकर ही
    महकना है जग में।
    पहचान  हर हाल में बनाये रखना है जहां में ।

    पुष्पा शर्मा”कसुम”