श्रृंगार छन्द में एक प्रयास सादर समीक्षार्थ
कर्म पर हिंदी में कविता
कर्म का सभी करेंआह्वान।
कृष्ण का ये है गीता ज्ञान।
कर्मबिन होतभाग्य से हीन।
सृष्टि में होत वही है दीन।।
कर्म जो करे सदा निष्काम।
पाय वह शांति औरआराम।
आत्म मेंही स्थित हो हरप्राण।
ब्रह्म में पा लेता है त्राण।।
सृष्टि में रहता जो आसक्त।
भोग में लिप्त रहे हर वक्त।
बंधनों से होत न वह मुक्त।
सृष्टि में ना ही वहउपयुक्त।
कर्मफल से बनता है भाग्य।
कर्म होशुभ मिलता सौभाग्य।
त्याग देता है जो अभिमान।
सत्य का हो जाता है ज्ञान।।
जान लेता है जो भी कर्म।
साथ हीअकर्मऔर विकर्म।
सृष्टि की आवाजाही बंद।
मुक्त हो जीवन का हर फंद।
जीतता इन्द्रियसकलसमूह।
होत ना उसे कर्म प्रत्यूह।
कर्म से होता जीवन्मुक्त।
जीव होत है ब्रह्म संयुक्त।।
कर्म ही जीवन काआधार।
कर्म ही रचता है संसार।
कर्म तो करोसभी निष्काम।
जीव पा जाता है विश्राम।।
©डॉ एन के सेठी
Very nice