Author: कविता बहार

  • शादी की सालगिरह – सुधीर श्रीवास्तव

    शादी की सालगिरह  – सुधीर श्रीवास्तव

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    आइए!
    मुझे मुबारकबाद दीजिये
    मगर मुझे छोड़िये
    मेरी श्रीमती को ही यह उपहार दीजिये
    जिसनें मुझे झेला है,
    मेरी बात न कीजिये
    उसका जीवन जैसे नीम करेला है।


    शादी का लड्डू मुझे बहुत भाया
    पर श्रीमती जी का शुगर लेवल
    अचानक बहुत बढ़ गया,
    अब वो बेलन संग सिर पर सवार हैं,
    अपना शुगर लेवल घटाने के लिए
    मुझ पर तैनात कर दिया पहरेदार है।


    आज सुबह सुबह वो चहकती हुई
    मेरे पास आई आई,
    बड़ी अदा से मुस्कराई,
    मुझे तो साक्षात काली नजर आई
    मेरे मुँह से आवाज तक नहीं आई
    मेरी हिम्मत भी पाला बदल
    जैसे उसके साथ नजर आई।


    उसने बड़े प्यार से गले लगाया
    मेरी पीठ थपथपाया,
    शादी की सालगिरह की बधाइयां दी।
    मैं भौचक्का सा हो गया
    जैसे सूर्य गलती से
    पश्चिम में उदय हो गया,
    फिर भी मैं खुश था
    सूर्य कहीं भी उदित हुआ हो
    मेरा रोम रोम खिल गया।
    पर ये क्या उनके सुर बदल गये
    मिठाई का डिब्बा उठाया
    मुझे दिखाया ,फिर बंद कर समझाया
    प्राणेश्वर !आज हमारी शादी की
    औपचारिक सालगिरह है,
    आज हम दोनों एक दूसरे के हुए थे
    पर ये मुआ शुगर जैसे ताक में थे।


    अब तो सूखे सूखे सालगिरह मनाना है
    मिठाई खाकर मुझे शुगर घटाना है,
    तुम्हें मिठाई से दूर रख
    अपना शुगर लेवल नार्मल करना है
    यही हमारा उपहार, तुम्हारा कर्तव्य है।
    शादी की सालगिरह मुबारक हो
    हम अच्छे या बुरे जैसे भी है
    एक दूजे की सबसे बड़ी जरूरत हैं,
    ये जरूरत युगों युगों तक बनी रहे
    लड़ाई झगड़े तो चलते ही रहेंगे
    शादी की सालगिरह यूं ही साल दर साल
    हम दोनों को मुबारक रहे।
    मेरी आँखें नम हो गयीं
    पत्नी क्या होती है ?
    बात समझ में आ गयी।
    सालगिरह की मुबारकबाद के बीच
    शादी के सात फेरों की याद आ गई।
    उम्र की बात क्या करें यारों
    ऐसा लगता है वो कल जिंदगी में आई
    और आज जिंदगी पर छा गई
    शादी की सालगिरह की
    एक बार फिर मुबारकबाद दे गई।

    सुधीर श्रीवास्तव
    गोण्डा, उ.प्र.

  • हास्य कविता-शादी की सालगिरह

    हास्य कविता-शादी की सालगिरह

    kavita

    आते ही शादी की सालगिरह
    पत्नी जी मुस्काई
    कहने लगी
    मेरे हमसफर आपको बधाई

    पति महोदय बधाई पाकर
    सर खुजाने लगे
    झंडू बाम सर में लगाने लगे

    पत्नी बोली
    ख़ुशी के दिन आपको भला
    क्या हो जाता है
    बधाई देने पर
    सर दर्द उमड़ आता है

    पति बोले-
    अरे भाग्यवान
    शादी के लिए
    मुश्किल से धन जुटाया था
    बैंड बाजे बाराती में
    धन लुटाया था

    कर्ज का बोझ अभी तक
    उतार नहीं पाया हूँ
    तेरे लिए सबकुछ ख़रीदा
    मेरे लिए एक पतलून तक
    नहीं ले पाया हूँ

    कभी जन्म दिन
    कभी करवाचौध
    कभी त्यौहार आ जाते हैं
    तू क्या जाने
    सारे पैसे खर्च हो जाते हैं

    जीवन संगनी जी
    शादी की साल गिरह की
    तारीख बता रही हो
    प्यार कम
    ख्वाइश ज्यादा बता रही हो

    तुम ही बताओ
    महंगाई के जमाने में
    सालगिरह को हम कैसे बनाएंगे
    तुम्हे चाहिए नई साड़ी
    हम तो झंडू बाम ही लगाएंगे

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

  • दीपक पर कविता

    दीपक पर कविता

    दीपक पर कविता

    दीया जलाएं- सुरंजना पाण्डेय

    माना कि चहुँओर घोर तमस है
    अन्धियारा घना छाया बहुत हैं।
    पर दीया जलाना कब मना है
    आईए हम मन में विश्वास का
    एक दीया तो ऐसे जलाएं।


    हम सब हर दिन कुछ ऐसे बिताएं
    खुशियों का करें हम ईजाफा।
    खुशियों को चहुँदिशों जगमगाएं
    एक दिया हो मन में ओज का,
    एक शान्ति का दिया द्वार पर रखे।
    नकारात्मकता को बाहर फेंके
    सकारात्मकता को जीवन में शामिल करे।


    एक दीया हो तो हमारे अपनो के लिए
    एक दीया मन के खुशियों के लिए।
    एक दीया दूसरो के खुशी के लिए जलाएं
    हो चहुंओर जगमग दीप सब ओर
    खुशियों के दीप टमटमांए हर मुण्डेर पे ।
    ऐसी एक आशा की लौं हम जलाए
    आईए जीवन में नवरस तो हम जगाए।


    जीवन में नव खुशियां हम तो लाए
    एक दीया हो नयी सोच का और
    नयी ऊर्जा के नाम का तो जलाए।
    जो जीवन को समर्थ ,सम्पन्न बनाए
    आईए जीवन का हर पल हम
    खुशनुमां तो हम जरूर बनाए।

    रौनकों से सजी हो सारी दीवारें
    कुछ ऐसी तो कोशिश की जाए।
    और जीने की एक नयी राह बनाए
    जीवन को तो एक नया आयाम दें।

    नकारात्मकता को सदा के लिए विराम दें
    एक नयी दिशा हम तो गढे और
    सदा हम सच की राह चुने।
    जो राह हो नयी आशा का
    और नये आत्मविश्वास का
    खुशियों के दीप जिसमें टिमटिमाए।


    ✍️ सुरंजना पाण्डेय

    दीप अखंड ज्योति- डॉ शशिकला अवस्थी

    खुद का जीवन दीपक- सा बनाएं ,खुद जलकर प्रकाश फैलाएं।

    जग में जो दीन दुखी हैं, उनके जीवन में सहयोग का दीप जलाएं ।

    जो निराश हैं उनमें आशा की जीवन ज्योत जलाए ।

    अपने और पराए रिश्तो में प्रेम का दीप जलाएं।

    देशवासियों में राष्ट्र भक्ति दीप जलाकर राष्ट्रप्रेम बढ़ाएं।

    शहीदों के परिवारों को सहयोग मदद दिलाएं,
    आशादीप बन जाए।

    निराश्रित बुजुर्गों को आशियाना दे ,परिजन सा स्नेह दीप जलाएं ।

    साहित्य जगत में मानवता, नैतिकता युक्त साहित्य रचाएं।

    दुनिया को नई राह दिखाएं, अखंड ज्योत दीपक जलाएं।

    प्रकाश स्तंभ बनकर, नौनिहालों को दीपक बनाएं।


    रचयिता
    डॉ शशिकला अवस्थी, इंदौर
    मध्य प्रदेश

    दीया तूफान से लड़ता रहा

    रात भर दीया तूफान से लड़ता रहा
    अकेला ऐकान्त में बस जलता रहा,

    अपनी सारी शक्ति लगा जूझता रहा
    लो को तेज हवाओं से बचाता रहा,

    अपनी पहचान नही खोनी थी
    रखता है दम वो भी लड़ना का,

    आज उसे ये दिखाना था सबको
    इसलिए हर हाल में बस टीका रहा,

    लाख मुश्किलें आई सामने मगर
    वो हालात से मुकाबला करता रहा,

    बाती उड़ी,लो मुड़ी टुड़ी बार बार
    पर दिये ने हौसला नही टूटने दिया,

    दीये कीतरह लड़नी पड़ती है सबको
    अपनी अपनी लड़ाई यहाँहर इंसां को

    दीया सिखा गया तूफान से लड़ने की
    ताकत,इरादों में मजबूती होनी चाहिए

    रात भर दीया तूफान से लड़ता रहा
    हाँअकेला अंधेरे से बस लड़ता रहा।


    मीता लुनिवाल
    जयपुर ,राजस्थान

    दीपक बनकर जलना सीखो

    खुद पर भरोसा है तो देना सीखो
    खुद दीपक बनकर जलना सीखो,
    बन सको अगर उजाला बनो तुम
    खुशी खुशी रोशनी बनना सीखो।
    घर रोशन करो तुम किसी और का
    काँटे नहीं फूल बनना सीखो,

    रोशन करो तुम किसी और का
    काँटे नहीं फूल बनना सीखो,
    कर सको राह रोशन किसी और की
    दीपक ऐसा पहले बनना सीखो।
    अपना दीपक भी खुद ही बन सको,
    ऐसा जतन तो पहले करना सीखो,
    अँधेरा मिटेगा तुम्हारा भी यारों
    खुद अपना दीपक बनना तो सीखो।
    ● सुधीर श्रीवास्तव
    गोण्डा, उ.प्र.

  • छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

    छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

    छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

    छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

    छेरछेरा – अनिल कुमार वर्मा

    होत बिहनिया झोला धरके,
    सबो दुआरी जाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।
    फुटगे कोठी बोरा उतरगे,
    सूपा पसर ले मुठा उतरगे।
    नवा जमाना आगे संगी,
    मुर्रा लाडू कहाँ पाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।
    सेमी के मड़वा कोठा म पड़वा,
    ढेकी सिरागे नंदागे जतवा।
    डबर रोटी के पो पो बाजे,
    अब अंगाकर कहाँ पाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।
    फरा सोहारी फटफट लागे,
    मूर्गा दारु झटपट आथे।
    डीजे नचईया ये पीढ़ी म,
    डंडा नाचा कहाँ पाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।
    नोनी घला मन जिंस मारके,
    आघु खोईल मोबाईल डारके।
    जमो छेरछेरा मनाथे।
    चला धान हमुं कमाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।
    बेच भांज के सबो धान ल,
    पिकनिक चला मनाबो।
    कहाँ ले पाबो अटकर बटकर ,
    बोकरा भात बनाबो।
    छेरछेरा के दान ल पाके,
    जुरमिल मजा उड़ाबो।।

    रचना – अनिल कुमार वर्मा सेमरताल
    [

    छेरिक छेरा- राजकुमार मसखरे


    छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेरछेरा
    माई कोठी के धान ल हेर हेरा……

    आगे आगे पुस पुन्नी रिहिस हे बड़ अगोरा
    अन्न परब के हवय तिहार,करले करले संगी जोरा…
    छेर छेराय हम बर जाबो
    धर के लाबो झोरा झोरा……!

    आ जा राजू,आ जा बंटी, आ जा ओ मनटोरा
    जम्मों जाबो,मजा पाबो चलो बनालेथन घेरा……
    छत्तीसगढ़ हे धान-कटोरा
    ये धरती दाई के कोरा………!

    टेपरा धरले, घंटी धरले, धर ले घाँघरा रे शेरा
    कोदई धोना,चुरकी,टोपली धर लगाबो जी फेरा…….
    धान सकेलबो,खजानी लेबो
    चिरहा राहय जी झन बोरा…!

    दान पाबो, दान करबो, आये हे जी सुघ्घर बेरा
    चार दिन के जिनगानी हे, झन कर तेरा मेरा…..
    अन्नपूर्णा के आसीस ले
    भरे ढाबा,कोठी घनेरा……..!

    छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेर छेरा
    माई कोठी के धान ल हेर हेरा
    अरन बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन
    आये हे अन्नदान के…ये परब छेर-छेरा…।।

    — भदेरा(पैलीमेटा)-गंडई,
    जि.-राजनांदगाँव

    छेर-छेरा पुन्नी- सन्त राम सलाम

    हमर छत्तीसगढ़ में जन मानस के,
    छेर छेरा पुन्नी सुग्घर अकन तिहार
    इही तिहार ले टकराहा होथे तब,
    लइका मन करथे पिकनिक बिहार।।

    अपन अपन लोग लइका मन ल ,

    सबों सियान मन घलो बने समझाथे।
    छेर छेरा धान ल तुम सकेल के राखव,
    ऐला धान कुटा केबने रांध गढ के खाथे।।

    हमर छत्तीसगढ़ हे धान के कटोरा,
    चारो मुडा बोरा-बोरा धान छलकथे।
    मेहनत के भरोसा अनाज उपजथे तब,
    नवा धान के चिला रोटी खोर ले महकथे।।

    दान दक्षिणा के सुग्घर परब,
    हमर छत्तीसगढ़ में मनाथे।
    लइका मन बर संस्कार होथे,
    जेन ल सियान ह समझाथे।।

    संगी साथी सबो हितवा मितवा,
    चरिहा टुकनी अउ झोला धरथे।
    छेर बरतनीन छेरीक छेरा के,
    ये गोहार ल मुहाटी में करथे।।

    हमर संस्कार धानी छत्तीसगढ़ में,
    आठों काल बारहवों महीना तिहार ।
    भाजी भांटा बोइर अउ नांदिया पोरा,
    टूटहा सुपा-सुपली बर जेठौनी बार।।

    बन के पुतरी ह खेत राखत रहिथे,
    चिरहा सलवार ल कनिहा में डार के।
    पुन्नी के चंदा कस मुडी ह दिखथे,
    हमर चना गहूं ओनहारी रखवार के।।

    ✍️ सन्त राम सलाम

  • हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम- आशीष कुमार

    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम

    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम
    कर्तव्य पथ पर डटो तुम
    मुश्किलों का सामना करो
    तूफान के आगे भी अड़ो तुम
    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम
    कर्तव्य पथ पर डटो तुम

    तुम्हारा कर्म ही तुम्हारी पहचान बनेगा
    चिरकाल तक तुम्हारा नाम करेगा
    लोभ मोह क्रोध पाप को तजो तुम
    सत्य निष्ठा नेकी का मार्ग धरो
    अन्याय से डटकर लड़ो तुम
    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम
    कर्तव्य पथ पर डटो तुम

    परोपकार के भागी बनो
    अहिंसा के पुजारी बनो
    नए आदर्श स्थापित करो तुम
    मन में अटूट विश्वास भरो
    संयम का पाठ पढ़ो तुम
    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम
    कर्तव्य पथ पर डटो तुम

    तुम्हारी कोशिशें गवाह बनेंगी
    सफलता की नई राह बनेगी
    फल की चिंता छोड़ो
    कर्म की कड़ियां जोड़ो
    अटल निश्चयी बनो तुम
    हे पार्थ ! सदा आगे बढ़ो तुम
    कर्तव्य पथ पर डटो तुम

    आशीष कुमार
    मोहनिया बिहार