शुभ दीपावली
शुभ दीपावली आई है,
मिलकर दीप जलाएँ।
सजे द्वार हरदम चमके,
घर आँगन महकाएँ।।
अंतर्मन भरे रोशनी,
छल, द्वेष, अहम मिट जाए।
आत्मसात कर सद्गुणों का,
तन-मन शुद्ध बनाएँ।।
रघुवर जैसे चरित बने,
हम शीलवान बन जाएँ।
सदा निश्चल भाव भरे मन,
श्री राम की महिमा गाएँ।।
प्रीत बंध मर्यादा से,
जीवन को चलो सजाएँ।
दीपों का उत्सव मनभावन,
खुशियाँ बाँटें, पाएँ।।
साफ करें हम दुर्गुणों को,
तभी जीवन में उजाला है।
क्षण भंगुर इस दुनिया में,
जिधर देखो सब काला है।।
करें संकल्प इस पर्व पर,
घर संग चरित महकाना है।
उज्जवल रंगोली जीवन रंगे,
खुशियों का दीप जलाना है।।
पूजन कर माँ लक्ष्मी,
कृपा सुखद पा जाएँ।
रिद्धि-सिद्धि धन संपदा,
सबके घर में आएँ।।
*~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’*
*रायपुर (छ.ग.)*
Author: कविता बहार
शुभ दीपावली / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा
सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार / डॉ एन के सेठी
इस दोहों की श्रृंखला में करवा चौथ के त्यौहार का सुंदर चित्रण किया गया है, जिसमें सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। दिनभर की पूजा-अर्चना के बाद, वे चंद्रमा का दर्शन कर व्रत खोलती हैं और अपने पति के प्रति अमिट प्रेम और समर्पण को प्रकट करती हैं। इन दोहों में त्यौहार की परंपराएं, सौभाग्य और अखंड प्रेम की भावना को भावुकता से व्यक्त किया गया है।सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार
आया करवा चौथ है, खुशियों का त्यौहार।
इसे मनाती सुहागिनें, पाए पति का प्यार।।
पति की आयु दीर्घ हो, करे कामना नार।
करती व्रत वह चौथ का,पूजे वह भरतार।।
धूप दीप नैवेद्य से, करती पूजन नार।
अक्षत रोली साथ में, आरत लेय उतार।।
दर्शन करती पीय का, फिर लेती व्रत खोल।
पति पत्नी का प्रेम ही, होता है अनमोल।।
सजी धजी है नारियाँ, लगे अप्सरा लोक।
मुख उनका ज्यों चंद्रमा,फैला जग आलोक।।
व्रत खोले वे रात में, लेती चंद्र निहार।
देती अर्घ्य सुहागिनें, सुखी हो घर संसार।।
माँ अखंड सौभाग्य हो, विनय करे बस एक।
प्रेम न कम हो पीय का, यही कामना नेक।।
*© डॉ एन के सेठी*शरद पूर्णिमा / स्वपन बोस बेगाना
इस कविता में शरद पूर्णिमा की चांदनी रात को अद्वितीय सौंदर्य और गहरे भावनात्मक जुड़ाव से जोड़ा गया है। चंद्रमा की रोशनी प्रियसी के मिलन की प्रतीक्षा को दर्शाती है, जबकि मानव जीवन में भगवान से दूर होने की पीड़ा और अनिश्चितता की झलक दिखाई देती है। कविता में नायक शरद पूर्णिमा की रात को अपने अंदर की भावनाओं और प्रियसी की याद में गहरे दर्द को व्यक्त करता है।शरद पूर्णिमा
चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है।
जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है।
शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है।
कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है।
अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है।
शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है।
गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है।
मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं।
तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है।
शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं।
कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं।
वादियों में आज अजीब सा नशा है।
क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है।
जनम जनम से उसकी ही तलाश है।
इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है।
स्वपन बोस,, बेगाना,,
9340433481करवा चौथ का दिन / राकेश राज़ भाटिया
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में सुहागिनों के प्रेम और आस्था का प्रतीक पर्व है, जहां हर सुहागन सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत रखती है। इस दिन का विशेष महत्व चांद के दीदार से जुड़ा होता है, जो जीवनसाथी के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत में सुहागिनें अपनी भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को निभाते हुए रिश्तों की मिठास और मजबूती को कायम रखती हैं।करवा चौथ का दिन
आज हर सुहागन के सोलह श्रृंगार का दिन है।
यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।
हाथों में चूड़ी पहने और वो पाँव में पायल डाले,
सुर्ख होंठों पे लाली और आँखों में काजल डाले,
भारतीय परम्परा और रीति-रिवाज निभाने को,
संवरती है हर सुहागन यूँ सिर पर आंचल डाले,
आज हर सुहागन की प्रीत और प्यार का दिन है।
यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।
नियम निभाती है हर सुहागन यूँ अपने व्रत का,
नाश करने को पति पर आई हरेक आफत का,
वो मांगती है दुआ पति की लम्बी उम्र के लिये,
जब छलनी में रखकर एक दीया वो चाहत का,
उसी भारतीय विरासत के विस्तार का दिन है।
यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।
बहुत ही अनूठी मेरे देश के इस पर्व की कहानी,
रिश्ते निभाने की ये परम्पराएँ हैं बड़ी ही पुरानी,
तप यह करके बन जाती है प्रेयसी साजन की,
सुहागन पीकर यूँ पति के हाथों से दो घूँट पानी।
अटूट रिश्तों के सम्मान एवं सत्कार का दिन है।
यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।
-राकेश राज़ भाटिया
थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
सम्पर्क- 9805145231, 7018848363पति-व्रता की प्रार्थना / शिवराज सिंह चौहान
यह कविता एक पतिव्रता स्त्री की भावनाओं और समर्पण को दर्शाती है, जो करवा चौथ के व्रत के दौरान अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती है। वह पूरे दिन व्रत रखती है, सोलह श्रृंगार करती है, मां पार्वती की कथा सुनती है और अपने सुहाग की सलामती की प्रार्थना करती है। चांद से विनती करती है कि वह जल्दी से आ जाए ताकि वह व्रत खोल सके और अपने पति के साथ अपना जीवन सुखमय बना सके।
पति-व्रता की प्रार्थना
पतिव्रता की पत रख लेना,
अपना धर्म निभाना रे।
चंदा तुझसे यही गुजारिश,
जल्दी से आ जाना रे।।
स्नान ध्यान कर सुबह सवेरे,
सब सोलह श्रृंगार किये।
पूजा पाठ, सुन कथा कहानी,
मां पार्वती का प्यार लिये।।
निराहार, निर्जल व्रत रखकर,
दिन भर पार पुगाना रे…
एक सुहागन मांग यही है,
मेरा अमर सुहाग रहे।
प्रियतम संग रह, प्रिया का भी,
सदा अखंड सौभाग रहे।।
खिलता पारिवारिक बाग रहे,
चांदनी वो फैलाना रे…
सती अनसूया, सावित्री सी,
नवदुर्गा अवतार है ये।
रिश्तो के ताने-बाने में,
सबसे सुंदर किरदार है ये।।
इक प्यार भरा संसार है ये,
यह सारे जग ने जाना रे…
जब तक तू ना आएगा वो,
छत पर खड़ी निहारेगी।
छलनी में से दर्श देखकर,
आरती मेरी उतारेगी।।
जल अर्पण कर मेरे हाथों से,
फिर खायेगी वो खाना रे…
चंदा तुझसे यही गुजारिश,
जल्दी से आ जाना रे…
# शिवराज सिंह चौहान
नान्धा, रेवाड़ी
(हरियाणा)