Author: कविता बहार

  • सिंहनाद छंद विनती (बासुदेव अग्रवाल)

    सिंहनाद छंद विनती

    छंद
    छंद

    हरि विष्णु केशव मुरारी।
    तुम शंख चक्र कर धारी।।
    मणि वक्ष कौस्तुभ सुहाये।
    कमला तुम्हें नित लुभाये।।

    प्रभु ग्राह से गज उबारा।
    दस शीश कंस तुम मारा।।
    गुण से अतीत अविकारी।
    करुणा-निधान भयहारी।।

    पृथु मत्स्य कूर्म अवतारी।
    तुम रामचन्द्र बनवारी।।
    प्रभु कल्कि बुद्ध गुणवाना।
    नरसिंह वामन महाना।।

    अवतार नाथ अब धारो।
    तुम भूमि-भार सब हारो।।
    हम दीन हीन दुखियारे।
    प्रभु कष्ट दूर कर सारे।।
    ================

    “सजसाग” वर्ण दश राखो।
    तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।

    “सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु
    112 121 112 2 = 10 वर्ण
    चार चरण। दो दो समतुकांत
    ********************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सुमति छंद (भारत देश) बासुदेव अग्रवाल

    सुमति छंद (भारत देश)

    छंद
    छंद

    प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
    बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
    पद पखारता जलनिधि खारा।
    अनुपमेय भारत यह प्यारा।।

    यह अनेकता बहुत दिखाये।
    पर समानता सकल बसाये।।
    विषम रीत हैं अरु पहनावा।
    सकल एक हों जब सु-उछावा।।

    विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
    पर समस्त की यक अभिलाषा।।
    प्रगति देश ये कर दिखलाये।
    सकल विश्व का गुरु बन छाये।।

    हम विकास के पथ-अनुगामी।
    सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
    ‘नमन’ देश को शत शत देते।
    प्रगति-वाद के परम चहेते।।
    =================
    लक्षण छंद:-

    गण “नरानया” जब सज जाते।
    ‘सुमति’ छंद की लय बिखराते।।

    “नरानया” = नगण रगण नगण यगण
    (111 212 111 122)
    2-2चरण समतुकांत, 4चरण।
    ***************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    रचना विधा – कविता

    shri ram hindi poem.j

    जननायक है राम
    सबके मनमंदिर के ,
    जनपालक हैं राम
    सबके जीवन पथ के ।

    सदा हो प्रणिपात
    श्री राम चरणों में ,
    श्रद्धा और विश्वास
    राम के आदर्शों में ।

    अनूप उदाहरण हैं
    राम मर्यादा बन के ,
    पुरूषोत्तम हैं राम
    हर जनमानस के ।

    हो कितने भी दाग
    भले ही धवल चंद्र में ,
    राम रहे सदा ही
    निष्कलंक जन मन मे ।

    सागर तोड़ दे सीमा
    हिम छोड़ी हिमगिरि ने
    किंतु न तोड़ा विश्वास
    जन जन का राम ने ।

    रचयिता -श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

  • आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    आज के समय परिवर्तन के
    मिजाज़ को देखो
    बदलते मिजाज़ के
    इस चमन को देखो

    किशोर जवानी की देहलीज़ पर
    अपने आपको
    वृद्ध महसूस कर रहे हैं

    इंसान, आज इंसानियत को त्याग
    अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं

    मानसिकता में मानव की
    अजब सा बदलाव आ गया है

    संस्कृति, संस्कारों को छोड़
    अवसरवादिता व आधुनिकता की अंधी दौड़
    भा गया है

    मर्यादा, तप, भावुकता, आत्मीयता
    बीती बातें हो गयी हैं
    आज का आदमी
    असहज असहज सा नज़र आ रहा है

    बाह्य आडम्बर ने
    मानव को आज
    भीतर से खोखला किया है
    सहृदयता की जगह
    वैमनस्यता ने ले ली है

    मानव आज का
    हास्यास्पद सा नज़र आ रहा है

    मानसिकता में आज के
    मानव की
    अजब सा मोड़ आ गया है
    उपकार, कृतिघ्निता, आत्मीयता
    इन सबमें अजीब सा
    ठहराव आय गया है

    अतिमहत्वाकांक्षा, चालाकी, चंचलता
    ने पसार लिए हैं पाँव
    आज का मानव
    अपवित्र, भयानक, कुटिल,
    क्रोधी व कपटी नज़र आ रहा है

    पल – पल जिंदगी इनकी
    नासूर हो रही है
    ताकत और धन के
    नशे में चूर
    जिंदगी इनकी
    बेनूर हो रही है

    चारित्रिक पतन ने
    इनका जीवन
    और भी भयावह
    कर दिया है
    अस्तित्व धरा पर
    इनका
    अंधकारपूर्ण हो गया है

    गिरता है कोई
    तो हंस उठते हैं सब
    उठता है कोई जब
    अर्श से आसमान की ओर
    तो सबका
    दिल जल उठता है
    किस्सा ए इंसानियत का
    इस धरा से
    नामो निशाँ
    मिट गया है

    आज आदमी हर
    एक दूसरे से
    कुछ इस तरह
    कट गया है

    जिस तरह
    नदी के दो पाट
    जिनके मिलने की संभावना
    न्यून हो गई है

    आदमी आदमी के काबिल न रहा
    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

  • हर एक दिन को नए वर्ष की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हर एक दिन को नए वर्ष की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    हर एक दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो तुम

    हर दिन यूं ही कल में
    परिवर्तित हो जाएगा
    तूने जो कुछ न पाया तो
    सब व्यर्थ हो जाएगा

    उद्योग हम नित नए करें
    हम नित नए पुष्प विकसित करें
    कर्म धरा को अपना लो तुम
    हर-क्षण, हर-पल को पा लो तुम

    व्यर्थ समय जो हो जाएगा
    हाथ ना तेरे कुछ आएगा
    मात-पिता के आशीष तले
    जीवन को अनुशासित कर

    पुण्य संस्कार अपनाकर
    अपना कुछ उद्धार करो तुम
    इस पुण्य धरा के पावन पुतले
    राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम

    मानवता की सीढ़ी चढ़कर
    संस्कृति का चोला लेकर
    पुण्य लेखनी बन धरती पर
    नित नए आविष्कार करो तुम

    खिल जाये जीवन धरती पर
    मानव बन उपकार करो तुम
    अपनाकर जीवन में उजाला
    नित नए आदर्श गढो तुम

    नित नए आयाम बनो तुम
    दयापात्र बनकर ना जीना
    अन्धकार को दूर करो तुम
    सदाचरण, सद्व्यवहार करो तुम

    हर एक दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो तुम