अक्षर पर कविता
मैं तो हूं केवल अक्षर
तुम चाहो शब्दकोश बना दो
लगता वीराना मुझको
अब तो ये सारा शहर
याद तू आये मुझको
हर दिन आठों पहर
जब चाहे छू ले साहिल
वो लहर सरफ़रोश बना दो
अगर दे साथ तू मेरा
गाऊं मैं गीत झूम के
बुझेगी प्यास तेरी भी
प्यासे लबों को चूम के
आयते पढ़ूं मैं इश्क़ की
इस कदर मदहोश बना दो
तेरा प्यार मेरे लिए
है ठंढ़ी छांव की तरह
पागल शहर में मुझको
लगे तू गांव की तरह
ख़ामोशी न समझे दुनिया
मुझे समुंदर का ख़रोश बना दो
:- आलोक कौशिक