नन्हें मेहमान पर कविता
मुंडेर पर रखे
पानी के कुंडे को
देख रहा था मैं
होकर आशंकित
मन में उठे प्रश्न
कोई पक्षी
आता है या नहीँ
पानी पीने
तभी मुंडेर पर
देखी मैंने
पक्षियों की बीठें
मन को हुई तसल्ली
कि आते हैं
नन्हे मेहमान
मेरी मुंडेर पर
-विनोद सिल्ला©
जय गणेश गणनायक देवा,बिपदा मोर हरौ।
आवँव तोर दुवारी मँय तो, झोली मोर भरौ।।1।।
दीन-हीन लइका मँय देवा,आ के दुःख हरौ।
मँय अज्ञानी दुनिया में हँव,मन मा ज्ञान भरौ।।2।।
गिरिजा नन्दन हे गण राजा, लाड़ू हाथ धरौ।
लम्बोदर अब हाथ बढ़ाओ,किरपा आज करौ।।3।।
शिव शंकर के सुग्घर ललना,सबके ख्याल करौ।
ज्ञानवान तँय सबले जादा,जग में ज्ञान भरौ।।4।।
जगमग तोर दुवारी चमके,स्वामी चरन परौं।
एक दंत स्वामी हे प्रभु जी,तोरे बिनय करौं।।5।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज”विनायक”
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
वसंत आया दूल्हा बन,
वासंती परिधान पहन।
उर्वी उल्हासित हो रही,
उस पर छाया हुआ मदन।।
पतझड़ ने खूब सताया,
प्रियतमा बन गई विरहन ।
पर्ण-वसन सब झड़ गये,
किये क्षिति ने लाख जतन।।
ऋतुराज ने उसे मनाया,
नव कोपलें ,नव पल्हव।
बनी धरा नव्य यौवना ,
मही मनमुदित, है मगन।।
वसुंधरा पर हर्ष छाया ,
सभी मना रहे हैं उत्सव।
सोलह श्रृंगारित है धरती
लग रही है आज दुल्हन।।
धरती के पर्यायवाची-उर्वी, क्षिति,धरा,मही ,वसुंधरा
मधुसिंघी
नागपुर(महाराष्ट्र)
पिता ईश सम हैं दातारी।
कहते कभी नहीं लाचारी।
देना ही बस धर्म पिता का।
आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१
तरु बरगद सम छाँया देता।
शीत घाम सब ही हर लेता!
बहा पसीना तन जर्जर कर।
जीता मरता सतत प्रणेता।२
संतति हित में जन्म गँवाता।
भले जमाने से लड़ जाता।
अम्बर सा समदर्शी रहकर।
भीषण ताप हवा में गाता।३
बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
मीत भला सब पिता निभाता!
पीढ़ी दर पीढ़ी दुख सहकर!
बालक तभी पिता बन पाता।४
धर्म निभाना है कठिनाई।
पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
नभ मे ध्रुव तारा ज्यों स्थिर।
घर हित पिता प्रतीत मिताई।५
जगते देख भोर का तारा।
पूर्व देख लो पिता हमारा।
सुत के हेतु पिता मर जाए।
दशरथ कथा पढ़े जग सारा।६
मुगल काल में देखो बाबर।
मरता स्वयं हुमायुँ बचा कर।
ऋषि दधीचि सा दानी होता।
यौवन जीवन देह गवाँ कर!७
पिता धर्म निभना अति भारी।
पाएँ दुख संतति हित गारी।
पिता पीत वर्णी हो जाता।
समझ पुत्र पर विपदा भारी।८
बाबू लाल शर्मा “बौहरा”
सिकंदरा, दौसा , राजस्थान