Author: कविता बहार

  • शारदे माँ पर कविता

    शारदे माँ पर कविता

    kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami


    (1)
    हे शारदे माँ ज्ञान के,भंडार झोली डार दे।
    आये हवौं मँय द्वार मा,मन ज्योति भर अउ प्यार दे।।
    हे हंस के तँय वाहिनी,अउ ज्ञान के तँय दायिनी।
    हो देश मा सुख शांति हा,सुर छोड़ वीणा वादिनी।।

    (2)
    आ फूँक दे स्वर तान ला,जग में सदा गुनगान हो।
    हे मातु देवी शारदे,माँ मान अउ सम्मान हो।।
    मँय मूढ़ अज्ञानी हवँव,कर जोर बिनती मोर हे।
    आ कंठ मा तँय बास कर,माँ ये कृपा अब तोर हे।।

    (3)
    रद्दा मिले सत् ज्ञान के,सद् बुद्धि व्यवहारी जगा।
    मन के सबो सन्ताप ला,घनघोर अँधियारी भगा।।
    माता तहीं हस मोर ओ,मँय छोड़ के नइ जाँव ओ।
    तोरे चरन के रज धरौं,अउ तोर गुन ला गाँव ओ।।
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    छंदकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
    All Rights Reserved@bodhanramnishad

  • स्वदेश पर कविता-बाबूलालशर्मा

    स्वदेश पर कविता

    करें जय गान!
    शहादत शान!
    सुवीर जवान!
    स्वदेश महान!

    करें गुण गान!
    सुधीर किसान!
    पढ़े इतिहास!
    बचे निज त्रास!

    धरा निज मात!
    प्रणाम प्रभात!
    पिता भगवान!
    सदा सत मान!

    रहे यश गान!
    स्वदेश महान!
    प्रवीर जवान!
    सुधीर किसान!


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला

    यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला

    आ जाती हैं यादें
    बे रोक-टोक
    नहीं है इन पर
    किसी का नियन्त्रण
    नहीं होने देती
    आने का आभास
    आ जाती हैं
    बिना किसी आहट के
    दे जाती हैं
    कभी गम का
    तो कभी खुशी का
    उपहार
    जब भी
    आती हैं यादें
    स्मृतियों के
    रंगमंच पर
    चल पड़ता है
    चलचित्र-सा
    लौट आते हैं
    पुराने दिन
    पुराना समय
    यादें तो यादें हैं

  • गज़ल-मौत का क्या है

    गज़ल-मौत का क्या है

    मौत का क्या है कभी तो आ ही जाएगी,,,
    हयात का क्या है कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,

    सोचते रहते हैं हम तो उनके बारे में,,,
    इंतजार की घड़ी कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,

    अंधेरा ही नज़र आता है हर तरफ,,,
    आसमां की रात कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,

    “सुखवीर” से बेशक प्यार करता नहीं कोई,,,
    नफ़रत जमाने की कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,

    नशे में डूबे रहते हैं दिन भर आंखो के,,,
    मयखाने की शराब कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,
    सुखवीर सिंह हरी
    वाट्स एप नंबर — 9466590453

  • बसन्त ऋतु पर गीत

    बसन्त ऋतु पर गीत

    लगे सुहाना मौसम कितना,
    मन तो है मतवाला।
    देख बसन्त खिले कानन में,
    फूलों की ले माला।।

    शीतलता अहसास लिए हैं,
    चलते मन्द पवन हैं।
    ऋतु बसन्त घर आँगन महके,
    जलते विरही मन हैं।।
    पंछी चहके हैं डाली पर,
    गाते गीत निराला।।
    लगे सुहाना…………………………

    ढाँक पलास खिले तरुवर पर,
    अनुपम छटा बिखेरे।
    सरिता की पावन जल धारा,
    कल-कल करती फेरे।।
    भँवरे गुन-गुन गाते मधुरिम,
    पी कर मधु का प्याला।
    लगे सुहाना…………………………..

    आम्र मंजरी लगे महकने,
    कोयल भी बौराई।
    हरियाली फूलों से शोभित,
    धरती ली अँगड़ाई।।
    मोती जैसे ओस कणों ने,
    पहना नया दुशाला।
    लगे सुहाना…………………………
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    छंदकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
    All Rights Reserved@bodhanramnishad