Author: कविता बहार

  • प्रभु ने ऐसी दुनिया बनाई है-माधवी गणवीर

    प्रभु ने ऐसी दुनिया बनाई है-

    प्रभु ने ऐसी दुनिया बनाई  है,
    कही धूप तो कही गम की परछाई है।

    रात का राजा देता है पहरा,
    चांदनी छिटककर मन में समाई है।

    निशा ने हर रूप है बदले,
    धरा पर जुगनुओं की बारात आई है।

    सारी फिजाओ को समेटे आगोश में,
    अंजुमन में आने को जैसे मुस्काई हैं।

    समीर ने लहराया परचम मीठा सा,
    खामोश वादियों में गुंजी शहनाई है।

    जागती है आंखे चंद ख्वाब बुनने में,
    रब ने ऐसी मेहर हम पर बनाई है।

    माधवी गणवीर
    राजनांदगांव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • पेरा ल काबर लेसत हो

    पेरा ल काबर लेसत हो

    तरसेल होथे पाती – पाती बर, येला काबरा नइ सोचत हो!
    ये गाय गरुवा के चारा हरे जी , पेरा ल काबरा लेसत हो !!

    मनखे खाये के किसम-किसम के, गरुवा बर केठन हावे जी !
    पेरा भुसा कांदी चुनी झोड़ के, गरुवा अउ काय खावे जी !!
    धान लुआ गे धनहा खेत के, तहन पेरा ल काबर  फेकत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो।।

    अभी सबो दिन ठाढ़े हावे,जड़काला में नंगत खवाथे न  !
    चईत-बईसाख  खार जुच्छा रहिथे, कोठा में गरुवा अघाथे न !!
    वो दिन तहन तरवा पकड़हू, अभी पेरा ल काबर फेकत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत  हो !!

    काय तुमला मिलत हे ,पेरा ल आगी लगाए म !
    एक मुठा राख नई मिले, खेत भर भुर्री धराये म।।

    अपने सुवारथ के नशा म, गरुवा काबर घसेटत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो !!

    झन लेसव झन बारव रे संगी,लक्ष्मी के चारा पेरा ल !
    जोर के खईरखाडार में लाओ, खेत के सबो पेरा ल !!
    अनमोल हवे सबो जीव बर, येला काबर नई सरेखत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो !!

    शब्दार्थ –  तरसथे = तरसना, पाती=पत्ती, पेरा = पैरा, लेसना = जलाना, बरिक दिन = बारह माह,  किसम-किसम= अनेक प्रकार के, भुर्री= ऐसी आग जो छड़ भर में बुझ जाए,  कांदी =घास, जुच्छा = खाली , तरवा = सीर, खईरखाडार = गऊठान
    सरेखना = मानना/समझना !

    दूजराम-साहू “अनन्य “
    निवास -भरदाकला 
    तहसील -खैरागढ़ 
    जिला-राजनांदगांव (छ .ग. ) 

  • तांका की महक- पद्म मुख पंडा स्वार्थी

    तांका की महक


    बेटी चाहती
    माता पिता की खुशी
    बहू के लिए
    सास ससुर बोझ
    तनातनी है रोज

    बेटी हमारी
    ससुराल क्या गई
    सास ससुर
    मांगते हैं दहेज
    चाहिए कार नई

    मच्छरों को क्या
    पाप पुण्य से काम
    चूसेंगे खून
    सभी लोगों का यूं ही
    जीना करें हराम

    लापरवाही
    होती खतरनाक
    सतर्क रहें
    ध्यान रखें सबका
    नहीं कोई मजाक

    पद्म मुख पंडा
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • वर्षा जैन “प्रखर- एक नया ख्वाब सजायें

    एक नया ख्वाब सजायें


    सपने कभी सुनहले कभी धुंधले से
    आँखों के रुपहले पर्दे पर चमकते से
    बुन कर उम्मीदों के ताने बाने
    हम सजाते जाते हैं सपने सुहाने

    कनकनी होती है तासीर इनकी
    मुक्कमल नहीं होती हर तस्वीर जिनकी
    सपनों को नही मिल पाता आकार
    मन के गर्त में रहते हैं वो निराकार

    टूटते सपनों की तो बात ही छोड़िये जनाब
    जिन्हें फिर से समेटना भी है एक ख्वाब
    बहने वाले हर आँसू को सहेजना मुमकिन नहीं
    टूटे सपनों को फ़िर से संजोना मुमकिन नहीं

    फूल तो फिर भी मुरझा कर
    बन बीज धरा में मिल जाते हैं
    अपने जैसे सुमन को फिर से उपजाते हैं
    टूटे सपनों को कैसे समेटुं
    कांच कहाँ फिर से जुड़ पाते हैं

    आँखों के बहते हर आँसू में 
    टूटे सपनों की मिलावट होती है
    काश वो सपने ही ना पलें आँखों में 
    जिनकी नियति ही टूटने में होती है

    कभी धन की कमी, कभी शरीर निर्बल
    अपनों ने दिया धोखा, कभी मन हो गया शिथिल
    धराशायी हो जाते हैं तब सपने
    जब उनको नहीं मिल पाता कोई क्षितिज

    आओ मिलकर एक नया ख्वाब सजायें
    मुकम्मल सा इक जहाँ बनायें
    मेरे सपनों को तुम सँवार देना
    तुम्हारे ख्वाबों को मै सहेज दूँगी
    आओ मिलकर एक नया ख्वाब सजायें
    •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • रामराज्य पर कविता / बाँके बिहारी बरबीगहीया

    रामराज्य पर कविता / बाँके बिहारी बरबीगहीया

    रामराज्य पर कविता / बाँके बिहारी बरबीगहीया

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    सप्तपुरी में  प्रथम  अयोध्या 
    जहाँ रघुवर   अवतार  लिए।
    हनुमत, केवट,  गुह  , शबरी
    सुग्रीव को हरि जी तार दिए।
    गौतम की भार्या  अहिल्या को
    चरण लगा उद्धार  किए ।
    मारीच, खर- दूषण , बाली
    और रावन का संहार किए ।
    आज अवधपुरी में  रघुवर
    राजा बन कर फिर से आयो।
    अवधपुरी में  बाजी बधाई 
    रामराज्य   फिर  से  आयो ।।

    इन्द्र की अमरावती से सुंदर 
    त्रिभुवन विदित राघव का गाँव ।
    सरयू तट पर केवट कहता
    बेठो पहुना जी मेरो नाव ।
    तेरी करूणा के सागर में प्रभु 
    पाते भक्त  अलौकिक छाँव ।
    चरण पखार कर पीना है हरि
    दास को दो निज पावन पाँव ।
    संग  सिया  को  साथ लिए
    करूणा निधान घर को आयो।
    अवधपुरी में  बाजी बधाई 
    रामराज्य  फिर से  आयो ।।

    बारह योजन में फैला  है
    राघव जी का यह पावन धाम।
    राम- राम जहाँ रटते पंछी 
    दिन दोपहर हो या हो शाम।
    रघुनाथ मेरे चितचोर मनोहर
    पुलकित मन लोचन अभिराम।
    जीते स्वर्ग पाते वे लोग हैं 
    जो  करते   सरयू   स्नान ।
    हरि को देख अवध के वासी 
    मन हीं मन अति हरसायो ।
    अवधपुरी में बाजी बधाई 
    रामराज्य फिर से  आयो ।।

    कण -कण में बसते यहाँ राघव
    राम की पैड़ी कर रही श्रृंगार ।
    सफल हुआ हर भक्त का जीवन 
    प्रभु के चरण पड़े निज द्वार ।
    माताएँ   सोहर  हैं  गाती 
    सखियाँ आरती रहीं  उतार ।
    अवध नरेश  के राजतीलक में 
    देखो  उमड़ा सारा  संसार ।
    सत्य, धर्म, तप,त्याग लिए
    प्रभु अवध में धर्मध्वजा लायो।
    अवधपुरी में  बाजी बधाई 
    रामराज्य  फिर से  आयो ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया