Author: कविता बहार

  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” प्रदूषण पर आधारित कविता

    प्रदूषण पर आधारित कविता

    prakriti-badhi-mahan
    prakriti-badhi-mahan

    यत्र प्रदूषण तत्र प्रदूषण

    सर्वत्र प्रदूषण फैला है
    खानपान भी दूषित है
    वातावरण प्रदूषित है

    जनसंख्या विस्फोट भी 
    एक समस्या भारी है
    जिसके कारण भी होती
    प्रदूषण की भरमारी है

    जल, वायु, आकाश प्रदूषित
    नभ, धरती, पाताल प्रदूषित
    मिल कर जिम्मेदारी लें
    इस समस्या को दूर भगा लें

    शतायु होती थी पहले
    अब पचास में सिमटी है
    ये आयु भी अब तो
    लगती हुई प्रदूषित है

    वातावरण हुआ प्रदूषित
    दिखता चहुँओर है
    उस प्रदूषण को दूर करें अब
    जो मन में बैठा चोर है

    नन्ही कलियाँ नहीं सुरक्षित
    कुछ लोगोंं की नजरें दूषित है
    दूर करो अब ये भी प्रदूषण
    मानवता होती दूषित है

    करें योग सेहत सुधारे
    व्याधि रोग दूर भगालें
    बच्चों के हम आधार
    हम ही पंगु हो जायेंगे तो
    कैसे होगा उनका उद्धार

    आओ मिलकर लें संकल्प
    प्रदूषण का ना बचे विकल्प
    सबकी समस्या का अब
    सब मिलकर करें समाधान


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • मच्छर -अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)

    मच्छर -अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)

    मच्छर -अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)

    mosquito

     एक हादसा कल रात हो गया,
                             हो बीमार मैं पस्त पड़ा।
    मच्छर एक ललकारते हुए,
                         तान के सीना समक्ष खड़ा।
    मच्छर हूँ मैं ,मुझसे तुम सब,
                           कब तक यूँ बच पाओगे ।
    चौबीस घण्टे मैं ड्यूटी करता 
                        तुम आठ घण्टे सो जाओगे।
    मेरे साथियों संग मैंने मिलकर ,
                          ऐसा षड्यंत्र रचाया है ।
    आने वाले दस वर्षो में ,
                    बस करना मानव- सफाया है।
    बड़ी बात भले लगती हो ,
                     देखो तुम पिछला इतिहास।
    गुजरे दस सालों को खंगालो ,
                     होगा तुमको फिर एहसास ।
    आधा काम परिपूर्ण हो चूका ,
                    मानव अब कमजोर बना ।
    दो चार दाव जो और लगे तो,
                        काम हमारा झट से बना ।
    सोए हुए तो जग भी जाएँ,
                            जागे हुए जागेंगे क्या ।
    सोते हुए जो मौत आ गयी,
                        मौत से फिर भागेंगें क्या ।
    काम हमारा सोते हुओं को ,
                      रोग गिफ्ट करना ही तो है।
    दो दिन तुम अब भले ही बच लो,
                    आखिर में मरना ही तो है ।
    गरीब घर या महल चौबारे,
                     सब जगह हमारा राज हुआ।
    जीत सको तो जीत लो बाजी ,
                     कल तो कभी न आज हुआ।
    छोटा हूँ पर ताली तुमसे ,
                       कई बार बजवा भी चुका ।
    तुमने लाख विरोध किया पर ,
                       रोके तुम्हारे कब मैं हूँ रुका।
    मुझे मसलने के ख्वाब देखते,
                      ख्वाब को मैने मसल दिया।
    बच्चा ,बूढ़ा  और जवान हो,
                        मेरा काटा बस मचल दिया।
    अभी तो कुछ ही दर्द दिया है,
                       कुल का साथ है मिला हुआ।
    चार अस्त्र (मलेरिया,डेंगू,चिकनगुनिया,जीका )ही अभी चले है,
                      आयुध खजाना भरा हुआ ।
    अभी हमारे शोध चल रहे,
                             नए-नए हथियारों पर।
    मच्छर कुल का राज चलेगा,
                                मानव के संसारों पर।
    समय अभी है अब भी जो तुम,
                             मच्छर मान भुलाओगे।
    आने वाले दस वर्षों में ,
                      तुम  मिट्टी में मिल जाओगे।
    नाम भले मौसम का ले लो ,
                      आखिर तो काम हमारा है ।
    मौसम जब-जब करवट लेता,
                       मिलता हमको सहारा है ।
    तुम्हीं हो कहते ,शत्रुजनों को ,
                          कमतर नहीं आंका करते ।
    शत्रु भी फिर मुझ जैसा हो,
                       डरकर नहीं भागा करते ।
    युद्ध करो मैं समक्ष खड़ा हूँ ,
                        जीत सको तो जीत भी लो।
    आज तो बस कमजोर किया,
                  कल के लिए भयभीत भी लो।
    मक्खी बहन जो कर ना पाई,
                         काम हमें वो करना ही है ।
    वर्षों से तैयारी हमारी ,
                       युद्ध हमें अब लड़ना ही है  । 
    जीत हमारी निश्चित ही है,
                        तुम चेत यदि न पाओगे ।
    अकाल मौत जो मर भी चुके है 
                   क्या उनको उत्तर दे पाओगे।  
    आँख मिलाना  दूभर होगा,
                          उन नन्हें-नन्हें  लालों से ।
    जीत सके न मुझसे गर तुम,
                         क्या उनको सिखलाओगे?
    सुन कर उसकी धमकी भारी,
                        मन भीतर तक कांप गया।
    उन बातों में गहरा दम था,
                      मजबूत इरादे मैं भांप गया ।
    मैं भी बोला,”सुन बे मच्छर ,
                        तुझ पर पार हम पा लेंगे।
    हैजा ,प्लेग ,पोलियो को फटका,
                           तुझको भी बतला देंगे ।
    साफ-सफाई उपचारों से ,
                         मक्खी को भी हराया है ।
    पर तु थोड़ा उससे बढ़कर,
                       अब करना तेरा सफाया है।
    माना कि आयुध तेरे अभी ,
                         मानव क्षति के कारक है।
    लेकिन फिर भी प्रयास हमारे,
                            तेरे कुल- संहारक है।
    साफ-सफाई ,उपचार-चिकित्सा ,
                     शोध -विज्ञान की ढाल बना।  
    तुझको सबक हम सिखला देंगे ,
                           जो तू आगे और ठना।”
    इतना कहकर मैने फिर ,
                  मच्छर-भगाऊ इस्तेमाल किया ।
    तूं-तूं करता गिर पड़ा जमीं पर 
                      जब मैंने उसे बेहाल किया ।
    मारा वो फ़टका था उस पर,
                        वो सीधा स्वर्ग सिधार गया।
    फटके की फटकार से मेरा,
                          चेतन मन भी जाग गया।       

    आँख जो खोली नींद नहीं थी,
                        ना ही था सपना मच्छर ।
    पर मच्छरों की तूं-तूं  तूं-तूं
                    फैली थी घर आंगन पर।

    -अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)

  • राधा की पुकार गीत/ केवरा यदु “मीरा “

    राधा की पुकार गीत/ केवरा यदु “मीरा “

    राधा की पुकार गीत / केवरा यदु “मीरा “

    radha shyam sri krishna
    श्री राधाकृष्ण

    राधा पुकारे  तोहे  श्याम  हाथ जोड़  कर।
    आ जाओ  मोहन  प्यारे  मथुरा  को छोड़  कर।।
    आ जाओ  मोहन  प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।

    रूठ गई निंदिया  श्याम  , चैनों  करार भी।
    प्रीत  जगाके  काहे  मुझको  बिसार दी।
    भूल  नहीं  जाना कान्हा  दिल से नाता  जोड़ कर।।

    आ जाओ  मोहन  प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।।
    आ जाओ—

    बाँसुरी बजा के  कान्हा  फिर से  बुलाने  आजा।
    पूनम की रात मोहन  रास रचाने  आजा।
    यमुना  तट पे बैठी  हूँ  मैं जाऊँ   ना  छोड़  कर।।

    आ जाओ  मोहन  प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।
    आ जाओ–

    मधुबन उदास  कान्हा   यमुना   उदास  है।
    रोते हैं  ग्वाले  तेरे दर्शन  की प्यास  है ।
    मुड़कर कर न देखा श्याम  हमसे नाता जोड़ कर।।

    आ जाओ  मोहन  प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।।
    आ जाओ–

    नैनों  से  नीर  बरसे  कान्हा  तेरी याद  में ।
    मर न जाऊँ  रो रोकर पछताओगे  बाद में ।
    कैसे  तुम  जीते हो मोहन हमसे मुँह  मोड़  कर।।

    आ जाओ  मोहन प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।
    राधा पुकारे तोहे श्याम  हाथ जोड़  कर।
    आ जाओ मोहन प्यारे मथुरा को छोड़ कर ।।
    आ जाओ—

    केवरा यदु “मीरा “

  • पुरानी यादो पर ग़ज़ल

    पुरानी यादो पर ग़ज़ल

    भुला बैठे थे हम जिनको वो अक्सर याद आते हैं
    बहारों के हसीं सारे वो मंज़र याद आते हैं

    रहे कुछ बेरहम से हादसे मेरी कहानी के
    झटक कर ले गए सबकुछ जो महशर याद आते है

    दिलों में खींच डाली हैं अजब सी सरहदें सबने
    हुए रिश्ते मुहब्बत के जो बेघर याद आते हैं

    गुज़र जाते हैं सब मौसम बिना देखे तुम्हें ही अब
    वो चाहत के अभी भी सब समंदर याद आते हैं

    बिछाती थी बड़े ही प्यार से मेरे लिए जो माँ
    महकते मखमली बाहों के बिस्तर याद आते हैं

    महशर….महाप्रलय

    कुसुम शर्मा अंतरा
    जम्मू कश्मीर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • नोटबंदी पर कविता

    नोटबंदी पर कविता

    सरकार जी 
    आपने की थी नोटबंदी
    आठ नवंबर
    सन् दो हजार सोलह को
    नहीं थके
    आपके चाहने वाले
    नोटबंदी के
    फायदे बताते-बताते
    नहीं थके
    आपके आलोचक
    आलोचना करते-करते
    लेकिन हुआ क्या?
    पहाड़ खोदने की
    खट-खट सुनकर
    बिल छोड़कर सुदूर
    चूहा भी भाग निकला
    आज है वर्षगांठ
    नोटबंदी की
    फायदे बताने वाले
    नहीं कर रहे
    नोटबंदी की याद में
    कोई समारोह
    मात्र आलोचक हैं
    क्रियाशील
    सोशल मिडिया पर। 

    -विनोद सिल्ला©

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद