Author: कविता बहार

  • छत्तीसगढ़ मैया पर कविता -श्रीमती शशिकला कठोलिया,

    छत्तीसगढ़ मैया पर कविता

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मैया,
    सुन लोग हो जाते स्तंभित,
    राष्ट्रगान सा स्वर है गुजँता,
    छत्तीसगढ़ का यह राज गीत,
    नरेंद्र देव वर्मा की अमर रचना,
    है उसकी आत्मा की संगीत,
    छत्तीसगढ़िया को बांधे रखता ,
    यह पावन सुंदर सा गीत ,
    धरती का शुभ भावों से सिंगार कर,
    छत्तीसगढ़ माटी का बढ़ाया गौरव,
    गीत में साकार हो उठता ,
    समूचे छत्तीसगढ़ का वैभव,
     स्वरलिपि में बांधने वाले ,
    धन्य है वह महान रचनाकार,
    छत्तीसगढ़ के आत्मा का संगीत,
    बन गया अरपा पैरी के धार ,
    बन गया अरपा पैरी के धार ।

     श्रीमती शशिकला कठोलिया, 
    शिक्षिका ,अमलीडीह ,डोंगरगांव
    जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)
    मो न – 9340883488
              9424111042
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  • इश्क पर कविता-माधवी गणवीर, छत्तीसगढ़

    इश्क पर कविता

    यू इस तरह न मुंह मोड़ कर चला करो,
    है इश्क तो जुबां से भी कहा करो।

    क्यों हाथ मिलाने पर रहते हो आमादा हर वक्त,
    अजनबी लोगों से थोड़ा फासले से मिला करो।

    भूल सकते नहीं तेरे अहसास कभी हम,
    हर राह पर, हर मोड़ पर तुम ही तुम दिखा करो।

    हर वक्त यूं वक्त न जाया किया करो,
    डायरी में लिखी चन्द ग़ज़ले भी पढ़ा करो।

    दिल्लगी नहीं ये दिल की लगी थी,
    दिल से निभाओगे बस यही दुआ करो।

    किस्से मशहूर हैं इश्क के बे़हद,
    फु़र्सत मिले तो उसे भी सुना करो।

    माधवी गणवीर
    छत्तीसगढ़
    7999795542
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  • जन्म लेती है कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जन्म लेती है कविता- 

    सूरज-सा चिरती निगाहें
    संवेदनाओं से भरी दूरदर्शी निगाहें
    अहर्निश हर पल
    घूमती रहती है चारों ओर

    दृश्यमान जगत के
    दृश्य-भाव अनेक
    सुंदर-कुरूप,अच्छे-बुरे,
    अमीरी-गरीबी, और भी रंग सारे

    भावों की आत्मा
    शब्दों की देह धरकर
    जन्म लेती है कविता।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
         9755852479
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  • पंछी की पुकार नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    पंछी की पुकार

    एक दिन
    सुबह-सुबह
    डरा-सहमा 
    छटपटाता 
    चिचिआता हुआ एक पंछी
    खुले आसमान से
    मेरे घर के आंगन में आ गिरा

    मैंने उसे सहलाया
    पुचकारा-बहलाया
    दवाई दी-खाना दिया
    कुछेक दिन में चंगा हो गया वह

    आसमान की ओर इशारा करते हुए
    मैंने उसे छोड़ना चाहा
    वह पंछी
    अपने पंजों से कसकर
    मुझे पकड़ लिया
    सुनी मैंने
    उसकी मूक याचना
    कह रहा था वह–
    ‘एक पिंजरा दे दो मुझे।’

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
        9755852479
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  • बाँके बिहारी बरबीगहीया – छठ पर्व आधारित कविता

    छठ पर्व आधारित कविता

    शुक्ल पक्ष पष्ठी  तिथि को
    कार्तिक मास में आती है ।
    सूर्य की प्रिय बहन प्रकृति 
    छठी मईया कहलाती है ।
    सूर्योपासना का महान पर्व में
    छठी माँ दिव्य रूप दिखाती है।
    महान व्रत इस छठ पर्व में
    करतीं छठवर्ती आदित्य का ध्यान
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करें दंड प्रणाम ।। 

    लोक आस्था का यह महापर्व
    शुद्ध संस्कृति की है पहचान ।
    कठिन तपस्या कर छठवर्ती
    पातीं हैं सूर्य से अभय दान ।
    केला,सेब,नाशपाती,नारियल
    मूली,ईख,घी के  पकवान ।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे दंड प्रणाम ।।

    कदुआ-भात नहाय खाय दिन
    खरना के दिन बनें महाप्रसाद।
    माँ के अंश इस महाप्रसाद में
    मिलता है हमें  अद्भुत   स्वाद।
    अरग के दिन घाटो पर गूँजे
    सूर्य छठी माँ की पावन नाद।
    जन-जन की रक्षक है मईया
    करातीं सबको अमृत रसपान।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे दंड प्रणाम ।।

    यूपी, बिहार, पूर्वांचल  क्षेत्र से
    झारखंड नेपाल की तराई तक ।
    गंगा ,यमुना ,सरयु तट  पर 
    महासागर की गहराई  तक ।
    महान पर्व होता यह छठ का
    धरती से लेकर जुन्हाई   तक।
    सीता ,द्रोपदी,राजा प्रियव्रत भी
    किए थे यह  पर्व महान ।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे  दंड  प्रणाम ।।

    सृष्टि  की  अधिष्ठात्री  प्रकृति
    छठी मईया बन उतपन्न हुईं ।
    जन कल्याण करने को माता 
    सर्वगुण से माता संपन्न हुई ।
    सबकी रक्षक बन आती माता
    जो सूर्य की प्रिय बहन हुई  ।
    छठव्रत करने से प्राणी  को
    हर्ष उल्लास मिलते हैं संतान
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत  आज करे  दंड प्रणाम।।

    ✒बाँके बिहारी बरबीगहीया ✒

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