Author: कविता बहार

  • तुम पर लगे इल्जामातमुझे दे दो

    तुम पर लगे इल्जामातमुझे दे दो

    तुम अपने अश्कों की सौगात
    मुझे दे दो
    अश्कों में डूबी अपनी हयात
    मुझे दे दो

    जिस रोशनाई ने लिखे
    नसीब में आंसू
    खैरात में तुम वो दवात
    मुझे दे दो

    स्याही चूस बन कर चूस लूंगा
    हरफ  सारे
    रसाले में लिखी हर इक बात
    मुझे दे दो

    जमाने से तेरी खातिर 
    टकरा जाऊँगा
    जो तुम पर लगे इल्जामात
    मुझे दे दो

    मैं सीने से लगा कर रख
    लूंगा ‘राकेश,
    गमजदा सब अपने वो जज्बात
    मुझे दे दो। 

    राकेश कुमार मिश्रा
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  • मेरे वो कश्ती डुबाने चले है

    मेरे वो कश्ती डुबाने चले है

    रूठे महबूब को हम मनाने चले है |
    अपनी मजबूरीया उनकों सुनाने चले है |

    जो कहते थे तुम ही तुम हो जिंदगी मेरी  |
    बीच दरिया मेरे वो कश्ती डुबाने चले है |

    ख्यालो ख्याबों मेरी  सूरत उनका था दावा |
    डाल गैरो गले बाहे वो मुझको भुलाने चले है |

    टूटकर चाहा खुद से भी ज्यादा जिसको |
    तोड़कर दिल मेरा दुश्मनों दिल लूटाने चले है  |

    यकीन हो उनको हम आज भी है आपके |
    जख्मी टूटा दिल हम उनको दिखाने चले है |

    खुला रखा दरवाजा दिला का खातिर उनकी |
    रौंदकर पैरो तले दिल वो मुझे तड़पाने चले है |

    श्याम कुँवर भारती
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  • मानवता की छाती छलनी हुई

    मानवता की छाती छलनी हुई

    विमल हास से अधर,
    नैन वंचित करुणा के जल से।
    नहीं निकलती 
    पर पीड़ा की नदी
    हृदय के तल से।।

    सहमा-सहमा घर-आँगन है, 
    सहमी धरती,भीत गगन है ।
    लगते हैं अब तो 
    जन-जन क्यों जाने ?
    हमें विकल से ।

    स्वार्थ शेष है संबंधों में, 
    आडंबर है अनुबंधो में ।
    मानवता की छाती छलनी हुई
    मनुज के छल से ।

    ——R.R.Sahu
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  • कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।
    कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ।

    कजरारी आँखें हुई,  काजल जैसी रात।
    सपनों में आकर कहे,  मुझसे मन की बात।

    कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी साथ।
    गिर के खो जाए कहीं, लगा रही पल हाथ।

    हार मोतियों का बना, लुभाती गले डाल।
    इतराती है पहन के, सबसे सुंदर माल।

    कंगन की खनक समझे, चूड़ी का संसार।
    प्रिय मिलन को तड़प रही, तू ही मेरा प्यार।

    अर्चना पाठक ‘निरंतर’ 

    अम्बिकापुर 

  • बस तेरा ही नाम पिता

    बस तेरा ही नाम पिता

           
    उपर से गरम अंदर से नरम,ये वातानुकूलित इंसान है!
    पिता जिसे कहते है मित्रो,वह परिवार की शान है!!

    अच्छी,बुरी सभी बातो का,वो आभास कराते है!
    हार कभी ना मानो तुम तो,हर पल हमै बताते है!!

    वो नही है केवल पिता हमारे,अच्छे,सच्चे मित्र भी है!
    परिवार गुलशन महकाए,ऎसा ब्रंडेड ईत्र भी है!!

    वह धिरज और गंभिरता की,जिती जागती सुरत है!
    वही हमारे परिवार मे,ईश्वर की दुजी मुरत है!!
    ”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
                  (२)
    अनुशासित दिनचर्या उनसे,असिम ज्ञान भंडार है!
    गुस्सा भी है सबसे जादा,और सबसे जादा प्यार है!!

    मुश्किलो मे परिवार की,पापा ही एक हौसला है!
    उन्हीके कारण परिवार का,एक सुरक्षित घोसला है!!

    वो खूद की ईच्छाओ का हनन है,परिवार की पुर्ती है!
    परिवार मे पिता ही साक्षात,बड़ी त्याग की मुर्ती है!!

    अपनी आँखो के तारो का,बहुत बड़ा अरमान हो तुम!
    परिवार के हर शख्स की,सचमुंछ मे एक जाॅन हो तुम!!
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                    (३)
    रात को उठकर जो बच्चो को,उढ़ाते देखे कंबल है!
    जो मां के माथे की बिंदीया,परिवार का संबल है!!

    हमने जिनके कंधे चढ़कर,जगत मे देखे मेले है!
    परिवार की खूशियो खातिर,संकट जिसने झेले है!!

    गुरु,जनक,पालक,पोषक तुम,तुम ही भाग्यविधाता हो!
    जरुरत की सब पुर्ती हो तुम,तुम ही सच्चे ताता हो!!

    रहे सदा जीवनभर जगमे,बस तेरा ही नाम पिता!
    बच्चो सुनो कितने भी बड़े हो,करना सब सम्मान पिता!!
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    कवि-धनंजय सिते(राही)
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    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद