Author: कविता बहार

  • मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है

    मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है

    जिसे चाहो नज़र से वो ही अक्सर दूर होता है
    मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है
    बुलंदी चाहता पाना हरिक इंसान है लेकिन
    मुकद्दर साथ दे जिसका वही मशहूर होता है ।


    सभी के हाथ उठते हैं इबादत को यहाँ लेकिन
    ख़ुदा को किसका जज़्बा देखिये  मंजूर होता है।
    उलटते ताज शाहों  के यहाँ देखें हैं हमने तो
    अभी से किसलिए तू इस कदर  मग़रूर होता है ।


    हज़ारों रोज़ मरते हैं यहाँ पैदा भी होते हैं
    कभी किसकी कमी से यह जहाँ बेनूर होता है।
    तुम्हें कैसे दिखाई देगी इस घर की उदासी भी
    तुम्हारे आते ही चारों तरफ़ जो नूर होता है।


    अभी से फ़िक्र कर रानी तू उनके बख़्शे जख़्मों की
    इन्हीं ज़ख़्मों से पैदा एक दिन  नासूर होता है।


          जागृति मिश्रा *रानी

  • गर्दिश में सितारे हों

    गर्दिश में सितारे हों

    गर्दिश में सितारे हों जिसके, दुनिया को भला कब भाता है,
    वो लाख पटक ले सर अपना, लोगों से सज़ा ही पाता है।

    मुफ़लिस का भी जीना क्या जीना, जो घूँट लहू के पी जीए,
    जितना वो झुके जग के आगे, उतनी ही वो ठोकर खाता है।

    ऐ दर्द चला जा और कहीं, इस दिल को भी थोड़ी राहत हो,
    क्यों उठ के गरीबों के दर से, मुझको ही सदा तड़पाता है।

    इतना भी न अच्छा बहशीपन, दौलत के नशे में पागल सुन,
    जो है न कभी टिकनेवाली, उस चीज़ पे क्यों इतराता है।

    भेजा था बना जिसको रहबर, पर पेश वो रहज़न सा आया,
    अब कैसे यकीं उस पर कर लें, जो रंग बदल फिर आता है।

    माना कि जहाँ नायाब खुदा, कारीगरी हर इसमें तेरी,
    पर दिल को मनाएँ कैसे हम, रह कर जो यहाँ घबराता है।

    ये शौक़ ‘नमन’ ने पाला है, दुख दर्द पिरौता ग़ज़लों में,
    बेदर्द जमाने पर हँसता, मज़लूम पे आँसू लाता है।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • प्यार का पहला खत पढ़ने को

    प्यार का पहला खत पढ़ने को

    प्यार का पहला खत पढ़ने को* तड़पी है यारी आँखें,
    पिया मिलन की* चाह में अक्सर रोती है सारी आँखें।

    सुधबुध खोकर जीता जिसने प्रीत का* रास्ता अपनाया
    प्रेम संदेशा पहुँचाये* वो जन – जन तक प्यारी आँखें।

    कठिन डगर पनघट की जिसने समझा अक्सर दूर रहा
    है* लक्ष्य भेदने में सक्षम अवचेतन वह तारी आँखें।

    कलयुग में हो जायें आओ हम द्वापर सा कृष्ण प्रिये
    वही बनेगा श्याम यहाँ अब है जिसकी न्यारी आँखें।

    मौन की* भाषा बड़ी सहज है जो पढ़ना इसको जाने
    ज्ञान सरोवर से अंतर्मन भरती महतारी आँखें।

    ?

    ✒कलम से
    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

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  • नज़र आता है

    नज़र आता है

    हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है,
    हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।

    जीने की आस लिए हर आदमी अब,
    मौत का करता इंतजार नज़र आता है।

    काम की तलाश में भटकता रोज यहाँ
    हर युवा ही बेरोजगार नज़र आता है।

    छाप अँगूठा जब कुर्सी पर बैठा तब,
    पढ़ना लिखना बेकार नज़र आता है।

    भूखे सोता गरीब, कर्ज़ में डूबा कृषक
    हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।

    गाँव शहर की हर गली में मासूमों संग,
    यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।

    और क्या लिखोगे अब दास्ताँ ‘प्रियम’
    सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।

    ©पंकज प्रियम

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  • हर पल मेरा दिल अब नग़मा तेरे ही क्यूं गाता है

    मेरा दिल अब नग़मा तेरे ही क्यूं गाता है

    हर पल मेरा दिल अब नग़मा तेरे ही क्यूं गाता है
    देखे कितने मंजर हमने तू ही दिल को भाता है
    ना जानूं क्यूं खुद पे मेरा लगता अब अधिकार नही
    आईना अब मैं जब भी देखूं तेरा मुखड़ा आता है ||
    दिल की वादी में तू रहती या दिल तुझमें है रहता
    समझाऊं जो नादॉ दिल को तो ये मुझसे है कहता
    समझा लेते जो नजरों को बात न इतना बढ़ पाती
    पर अब मैं खुद से बेबस हूँ  तू भी बेबस है लगता ||
    नींद से पहले यादें तेरी नींद में हो सपने तेरे
    बिन राधा जो श्याम की हालत वो ही मेरी बिन तेरे
    हैं बतलाते तुमको की क्या हसरत है मेरे दिल की
    आओ तुम हो जाओ मेरी हम हो जाते हैं तेरे ||
    मेरा हर दिन रौशन तुझसे शाम सुहानी लगती है
    कुद़रत की शहजादी तू “फूलों की रानी”लगती है
    “विपुल-प्रेम” अर्पण है तुमको मानो या ठुकरा देना
    हर-पल-लब पर नाम तेरा धड़कन दीवानी लगती है ||
      ✍विपुल पाण्डेय✍
         प्रयागराज
      +919455388148
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