मौन बोलता है
हाँ !
मैं ठहर गया हूँ
तुम्हारी परिधि में आकर
सुन सको तो
मेरी आवाज सुनना
“मौन” हूँ मैं,
मैं बोलता हूँ
पर सुनता कौन है
अनसुनी सी बात मेरी
तुम्हारी “चर्या” के दरमियाँ
मेरी “चर्चा” कहाँ ,
काल के द्वार पर
मुझे सब सुनते हैं
जीवन संगीत संग
मुझे सुन लिया होता
रंगीन से जब
हुए जा रहे थे
संगीत जीवन का
बज रहा था तब,
व्योम
कुछ धुंधलका समेटे है
निराशा के बादल
छाए हुए लगते हैं
पर यह सच नहीं
अतीत साक्षी है
पलट कर देख लो तुम
जिन्होंने सत्य को
पा लिया जीवन में
मौन को सुना और
साध लिया उन्होनें.
राजेश पाण्डेय अब्र
अम्बिकापुर
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद