Author: कविता बहार

  • पिरामिड विधा पर रचना

    हनुमत पिरामिड

    पिरामिड विधा पर रचना

    हे
    वायु
    तनय
    हनुमान
    दे वरदान
    रहें खुस हाल
    प्रभू  हर हाल में ।

    हे
    दुखः
    हर्ता हे
    बजरंगी
    राम दुलारे
    भक्तन पुकारे
    हे कष्ट विनाशक।

    माँ
    सीता
    को प्यारे
    ले-मुदृका
    समुद्र लांधे
    सिया सुधि लाये
    भक्तन हितकारी ।

    श्री
    राम
    छपते
    लंका जला
    दानव   दल
    संहार  करके
    बाग उजारे प्रभू।

    ले
    वैद
    सुखेन
    संजीवनी
    लेकर आये
    प्राण  लक्ष्मण के
    बचाये     बजरंगी ।

    हे
    देव
    मनाये
    तुम्हें रक्षा
    करो जगत
    भव ताप हरो
    हे नाथ  महाबली ।

    केवरा यदु “मीरा “

    तुलसी पिरामिड

    हे
    विष्णु
    प्रिया माँ
    तुलसी तू
    सब जग की
    माता सुख दाता
    तुलसी  महारानी ।

    हे
    श्यामा
    सुर वल्ली
    ग्राम्य माता
    तुमको मना
    दीप जलाकर
    वाँछित फल पाऊँ।

    ले
    जन्म
    विजन
    आई है माँ
    भवन मेरी
    हरि की प्यारी तू
    श्यामवर्णी  हे माते।

    हे
    श्यामे
    तुम हो
    गुणकारी
    रोग ऊपर
    रूज से रक्षा रत
    संजीवनी  हो तुम ।

    हो
    सर्दी
    खाँसी  तो
    या  बुखार
    काली  मिर्च व
    तुलसी के पत्ते
    उबालें  काढ़ा  पी लें।

    हो
    गर
    दस्त तो
    तुलसी  के
    पत्ते को जीरे
    मिला के पीस  लें
    दिन में  तीन बार ।

    केवरा यदु “मीरा “

    हनुमत पिरामिड

    को
    नहीं
    जानत
    जग में तु
    दूत राम को।
    महिमा दी तूने
    सालासर ग्राम को।
    राम लखन को लाए
    पावन किष्किंधा धाम को।
    सागर लांघा  लंकिनी  मारी
    लंका में छेड़ दिया संग्राम को।
    सौंप मुद्रिका  उजाड़ी  वाटिका
    जारे तब लंका ललाम को।
    स्वीकार   करो  बजरंगी
    तुम मेरे प्रणाम को।
    हे बाबा  रक्षा  कर
    आठहुँ याम को।
    ‘नमन’ करूँ
    पूर्ण करो
    सारे ही
    काम
    को।
    बासुदेव अग्रवाल नमन
    तिनसुकिया

  • चैत्र शुक्ल में मनाएं नवरात्रि त्यौहार

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    चैत्र शुक्ल में मनाएं नवरात्रि त्यौहार

    चैत्र शुक्ल में मनाएं ,नवरात्रि त्यौहार ।
    सुख वैभव भरपूर ,खुशियां मिले अपार ।।


    प्रथम दिवस शैलपुत्री कुँवारी कन्या माता ।
    पूजा करने वाला सुख-सम्पति पाता ।।


    ब्रह्मचारिणी देवी है, स्त्री रूप में गुरु ।
    ज्ञान आनंद की दात्री पावन होती रूह ।।


    चंद्रघंटा के दशो भुजाओं में अस्त्र ।
    सिंह सवार होकर शत्रु को करे पस्त ।


    चतुर्थ दिवस को पूजित माँ कुष्मांडा ।
    हँसने से इनके होता उत्पन्न ब्रह्माण्ड ।।


    शिवपत्नी कार्तिकेय की जननी स्कंदमाता।

    भक्तो की पालक जग की यही विधाता ।।


    कात्यायनी ने दिया गोपियों को कृष्णप्रेम वरदान ।
    असुरो का संहार किया धरती का उत्थान ।।


    कालरात्रि माँ मशाल से करे प्रकाश ।
    साधना विघ्न दूर हो घट जाये संत्रास ।।


    अष्टमी को महागौरी की करे आराधना ।
    जनकल्याण करे ये माता पूरी हो साधना ।।


    नवमी सिद्धिदात्री पूजन आठ दिवस का फल ।
    भक्त तुमको मोक्ष मिलेगा जीवन होगा सफल ।।


    जीवन में सुख मिले दुखो का हो अंत ।
    नवरात्रि के पावन समय ,खुशियां मिले अनन्त ।।

                   प्रकाश शर्मा ‘पंकज’

  • कौन समय को रख सकता है

    कौन समय को रख सकता है

    कौन समय को रख सकता है, अपनी मुट्ठी में कर बंद।
    समय-धार नित बहती रहती, कभी न ये पड़ती है मंद।।
    साथ समय के चलना सीखें, मिला सभी से अपना हाथ।
    ढल जातें जो समय देख के, देता समय उन्हीं का साथ।।
    काल-चक्र बलवान बड़ा है, उस पर टिकी हुई ये सृष्टि।
    नियत समय पर फसलें उगती, और बादलों से भी वृष्टि।।
    वसुधा घूर्णन, ऋतु परिवर्तन, पतझड़ या मौसम शालीन।
    धूप छाँव अरु रात दिवस भी, सभी समय के हैं आधीन।।
    वापस कभी नहीं आता है, एक बार जो छूटा तीर।
    तल को देख सदा बढ़ता है, उल्टा कभी न बहता नीर।।
    तीर नीर सम चाल समय की, कभी समय की करें न चूक।
    एक बार जो चूक गये तो, रहती जीवन भर फिर हूक।।
    नव आशा, विश्वास हृदय में, सदा रखें जो हो गंभीर।
    निज कामों में मग्न रहें जो, बाधाओं से हो न अधीर।।
    ऐसे नर विचलित नहिं होते, देख समय की टेढ़ी चाल।
    एक समान लगे उनको तो, भला बुरा दोनों ही काल।।
    मोल समय का जो पहचानें, दृढ़ संकल्प हृदय में धार।
    सत्य मार्ग पर आगे बढ़ते, हार कभी न करें स्वीकार।।
    हर संकट में अटल रहें जो, कछु न प्रलोभन उन्हें लुभाय।
    जग के ही हित में रहतें जो, कालजयी नर वे कहलाय।।
    समय कभी आहट नहिं देता, यह तो आता है चुपचाप।
    सफल जगत में वे नर होते, लेते इसको पहले भाँप।।
    काल बन्धनों से ऊपर उठ, नेकी के जो करतें काम।
    समय लिखे ऐसों की गाथा, अमर करें वे जग में नाम।।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें

    मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें


    मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
    नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।
    कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
    बात लोगों से फिर तमाम करें।
    सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
    खाना पीना तलक हराम करें।
    दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
    महफिलों में न इश्क़ आम करें।
    वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
    चाहे जितना भी ताम झाम करें।
    या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
    रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।
    पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
    कैसे अब उनको हम सलाम करें।
    खा गये देश लूट नेताजी,
    आप अब और कोई काम करें।
    आज तक जो न कर सका था ‘नमन’,
    काम वो उसके ये कलाम करें।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • अब क्या होत है पछताने से

    अब क्या होत है पछताने से

    तनको मलमल धोया रे और मनका मैल न धोया
    अब क्या होत है पछताने से वृथा जनम को खोया रे
    भक्ति पनका करे दिखावा तूने रंगा चदरिया ओढ़कर
    छल कपट की काली कमाई संग ले जाएगा क्या ढोकर
    वही तू काटेगा रे बंदे तूने है जो बोया रे
    तनको मलमल धोया रे…

    सत्य वचन से विमुख रहा तूने पाप से नाता तोड़ा नहीं
    मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में जाके हांथ कभी भी जोड़ा नहीं
    करे इतना क्यूं गुमान रे तेरी माटी की काया रे …
    तनको मलमल धोया रे…

    रोया “दर्शन” जनमानस की सोच के झूठी वाणी पर
    दे सतबुद्धि हे दयानिंधे इन अवगुण अज्ञानी प्राणी पर
    बारंम्बार आया प्रभुद्वारे जागा नहीं तू सोया रे..
    तनको मलमल धोया रे…
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    दर्शनदास मानिकपुरी ग्राम पोस्ट धनियाँ
    एन टी पी सी सीपत
    बिलासपुर-जिला (छ. ग.)