सादा जीवन की अभिलाषा
संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!
सादा जीवन की अभिलाषा,कभी पाली थी मैने भी!
जीवन रथ की चाल बैढँगी,कठिन डगर पर चला गया!
मन के मेरे सब वादों को,पल पल मितवा छला गया!
रिश्ते नातों की उलझन में,वादे तोड़े मैने भी!
संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!……(१)
रहा भटकता ‘भावुक’ मनवा,इस जीवन की राहों में!
कर्म कलुषित छू गये पगले,अटका जाय पनाहों में!
उठी नहीं डलिया वादों की,जोर लगाया मैने भी!
संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!!…….(२)
लिखे लेखनी हाल हमारा,राज सुनो अब जगवालों!
मन मूरत की पर्त उघाड़े,जरा नजर तो तुम डालो!
सदा रहा अलमस्त दिवाना, नाम जपा था मैने भी!
संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!!…… (३)
भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
टापरवाड़ा