Author: कविता बहार

  • सादा जीवन की अभिलाषा

    सादा जीवन की अभिलाषा

    संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!
    सादा जीवन की अभिलाषा,कभी पाली थी मैने भी!

    जीवन रथ की चाल बैढँगी,कठिन डगर पर चला गया!
    मन के मेरे सब वादों को,पल पल मितवा छला गया!
    रिश्ते नातों की उलझन में,वादे तोड़े  मैने भी!
    संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!……(१)

    रहा भटकता ‘भावुक’ मनवा,इस जीवन की राहों में!
    कर्म कलुषित छू गये पगले,अटका जाय पनाहों में!
    उठी नहीं डलिया वादों की,जोर लगाया मैने भी!
    संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!!…….(२)

    लिखे लेखनी हाल हमारा,राज सुनो अब जगवालों!
    मन मूरत की पर्त उघाड़े,जरा नजर तो तुम डालो!
    सदा रहा अलमस्त दिवाना, नाम जपा था मैने भी!
    संयम के संग जीना चाहा,सँकल्प किया था मैने भी!!…… (३)


    भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
    टापरवाड़ा

  • भारत मां के सपूत

    भारत मां के सपूत                  

    (1)
    तिलक लगाकर चल, भाल सजाकर चल।
    माटी मेरे देश की, कफ़न लगाकर चल।
    देश में वीर योद्धा जन्मे, मच गई खलबल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (2)
    भगत ,चंद्रशेखर, सुखदेव थे क्रांतिकारी दल।
    अंग्रेजो के नाक में ,दम कर रखा था हरपल।
    देश आजादी पाने के लिए,बना लिए दलबल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (3)
    नारी जगत की शान ने,मचाया कोलाहल।
    ऐसी वीरांगना लक्ष्मीबाई को याद करेंगे हरपल।
    मातृभूमि  के लिए,जब कुर्बानी दी थी ओ पल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    (4)
    लाल बाल पाल क्रांतिकारी, ये थे गरम दल।
    साइमन कमीशन वापस जाओ,किया हल्ला बोल।
    वीर लाला लाजपत राय ने गवांई प्राण ओ पल।
    भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल।

    रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
    बसना, महासमुंद , (छ. ग.)
    ‌8120587822

  • वन्दे मातरम् गाऊँगा

    वन्दे मातरम् गाऊँगा

    वन्दे मातरम् गाऊँगा

    mahatma gandhi

    बापू जी के चरखे को,
    मैं भी खूब घुमाऊँगा।
    सत्य-अहिंसा की बातें,
    सबको रोज सुनाऊँगा।।

    चाचा जी के लाल ग़ुलाब,
    बाग़-बगीचे में लगाउँगा।
    शीश झुकाकर चरणों में,
    लाल ग़ुलाब चढ़ाऊँगा।।

    पर्वत-घाटी ऊँचा चढ़कर,
    तिरंगा ध्वज फहराउंगा।
    चाहे दुनिया जो भी करले,
        वन्देमातरम् गाऊँगा।।

        ||स्वरचित||
    उमेश श्रीवास”सरल”
    मु.पो.+थाना-अमलीपदर
    विकासखण्ड-मैनपुर
    जिला-गरियाबंद,छत्तीसगढ़

  • बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    भारत ने थी पहन ली, गुलामियत जंजीर।
    थी  अंग्रेज़ी  क्रूरता, मरे   वतन  के   वीर।।

    काले पानी  की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली  गाली  बरसते, भर  देते  थे  जेल।।

    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर  डायर  क्रूर  ने, खेला  खूनी फाग।।

    मोहन, मोहन  दास बन, मानो  जन्मे  देश।
    पढ़लिख बने वकीलजी,गुजराती परिवेश।।

    देखे  मोहन दास  ने, साहस  ऊधम  वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।।

    बापू के  आदर्श थे, लाल बाल  अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।।

    अफ्रीका  मे  वे  बने, आजादी  के  दूत।
    लौटे  अपने देश फिर, मात भारती पूत।।

    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी  साधू  वेश।।

    गोरे  काले  भेद  का, करते  सदा   विरोध।
    खादी चरखे कातकर, किए स्वदेशी शोध।।

    कहते सभी महातमा, आजादी अरमान।
    बापू  अपने  देश  का, लौटाएँ   सम्मान।।

    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी पस्त।
    आजादी  दी  देश को, वे पन्द्रह  अगस्त।।

    बँटवारे  के  खेल में, भारत  पाकिस्तान।
    गांधीजी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।।

    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता  जनता कहे, बापू  हुए  महान।।

    तीस जनवरी को हुआ,उनका तन अवसान।
    सभा  प्रार्थना  में  तजे, गाँधी  जी  ने  प्रान।।

    दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
    बापू  तेरे   देश  का, अब  रखवाला  कौन।।

    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी  मान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।।

    बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य  माँ भारती, गांधी  पूत  महान।।


    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • वाणी वन्दना

    वाणी वन्दना


       निर्मल करके तन_ मन सारा,
       सकल विकार मिटा दो माँ,
        बुरा न कहे माँ किसी को भी
        विनय यह स्वीकारो  माँ।
          अन्दर  ऐसी ज्योति जगाओ
          हर  जन का   उपकार करें,
           मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय
           उनसे मुक्ति दिलाओ  माँ।
            प्रज्ञा  रूपी किरण पुँज तुम
            हम तो निपट  अज्ञानी है,
             हर दो अन्धकार तन_ मन का
              माँ सबकी नयै पार पार करो।

    कालिका प्रसाद सेमवाल