जिन्दगी पर कविता

जिन्दगी है,  ऐसी कली।
जो बीच काँटों के पली।
पल्लवों संग झूल झूले,
महकी सुमन बनके खिली।


जिन्दगी  राहें अनजानी।
किसकी रही ये पहचानी।
कहीं राजपथ,पुष्पसज्जित,
कहीं पगडण्डियाँ पुरानी।


जिन्दगी सुख का सागर ।
जिन्दगी नेह की गागर।
किसी की आँखों का नूर ,
धन्य विश्वास को पाकर।


जब डगमगाती जिन्दगी।
गमगीन होती जिन्दगी ।
मिले  हौंसलों के पंख तब
नभ में उड़ती है जिन्दगी।

जिन्दगी एक अहसास है
भटकी हुई सी प्यास है।
जिन्दगी भूले सुरों  का ,
अनुपम सुरीला राग है


कर्म पथ से  ही गुजरती।
मंजिलें मुश्किल से मिलती।
जिन्दगी अमानत ईश की
डोर इशारे उसके चलती । 

पुष्पा शर्मा “कुसुम”