बलात्कार पर कविता

बलात्कार पर कविता

हो रहे इन बलात्कारों का सबसे बड़ा जिम्मेदार।
फिल्म, सीरियल मीडिया और विज्ञापन बाजार।

अर्धनग्न तस्वीरों को मीडिया और इंटरनेट परोसता है।
बालमन छुप-छुपकर इसमें ही अपना सुख खोजता है।

फिल्मी गानें और नाच बच्चों को उकसाते हैं।
विज्ञापन में नारी देह ही बार-बार दिखाते हैं।

कमतर कपड़ों में दिखाते अश्लील आईटम डाँस।
नैतिकता को छोड़ सिखाते, ऐसे करो रोमांस।

सीरियलों में सुहागरात के सीन साझा करते हैं।
प्रेगनेन्सी टेस्ट किट और बी.गेप भी सामने रखते हैं।

माँ-बाप काम पर और बच्चा मोबाइल के साध होता है।
पार्न साईड पर जाकर वह बच्चा जल्द जवानी ढ़ोता है।

दादा-दादी के सीखों से जब बच्चा वंचित रहता है।
बात-बात पर गंदी बात फिर वह मुँह पर रखता है।

ऐसे सामाजिक माहौल में कौन बच्चा संस्कारी होगा?
देख-देखकर दुनियादारी वही बालात्कारी होगा?

पुलिस और सरकार के खिलाफ आवाज उठाकर क्या होगा?
चौक-चौराहों पर संवेदना में मोमबत्तियाँ जलाकर क्या होगा?

रोकना है तो इन सब बाजारवाद को रोको।
अपनी सारी ताकत इनके खिलाफ ही झोंको।

सजग रहें कि हमारी भी बेटी और बेटा है।
कहीं इन्हें भी तो उसी सर्प ने नहीं लपेटा है।

*कन्हैया साहू ‘अमित”*✍
भाटापारा छत्तीसगढ़

सहमत हैं तो कवि नाम के साथ शेयर करें।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *