बेखुदी की जिंदगी…
बेखुदी की जिंदगी हम जिया करते हैं।
शायद इसलिए हम पिया करते हैं ।
रही सही उम्मीदें तुझ पर अब जाती रही।
ना समझ बन गए हैं कोई सोच आती नहीं ।
मिली तुझसे जख्मों को हम सीया करते हैं ।
बेखुदी की जिंदगी…
बेशुमार दौलत क्या? हमको पता नहीं ।
बेपनाह मोहब्बत क्या ?तुमको पता नहीं।
फिर हम सा कोई फकीर ,क्यों प्यार किया करते हैं ।
बेखुदी की जिंदगी…
प्यार कोई कसमों को, देखती कहां है ?
दुनिया की रस्मों को, सोचती कहां है ?
दुनिया के लिए रहो प्यारी ,
दुआ दिल से दिया करते हैं ।
बेखुदी की जिंदगी…
🖋मनीभाई नवरत्न